Book Title: Fulchandra Shastri Abhinandan Granth
Author(s): Jyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
Publisher: Siddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi

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Page 629
________________ महावीर निर्वाण दिन-दीपावली कार्तिक कृष्णा अमावस्याके दिन श्रमण महाप्रभु निग्गंठ नाम पुत्र वर्धमान महावीरको निर्वाण गये २४७७ वर्ष पूर्ण हो जाएँगे। इस दिन उनका निर्वाण पावामें हुआ था। उन्होंने अन्तिम समय अपने प्रमुख शिष्य (गणधर) गौतम आदिको यही कहा था-"समयं गोयम मा पमायए"-हे गौतम, क्षण मात्र भी प्रमाद न कर। उनकी इस एक अप्रमादकी चेतावनीने गौतमकी आत्मवीणाके एक एक सूक्ष्म तारको झंकार दिया और वे उसी दिन केवलज्ञानी हो गये, उन्हें 'अहंत' पद प्राप्त हुआ। उन्होंने महावीरके धर्मचक्रको सम्हाला और उसी अहिंसा समता और वीतरागताकी उच्च भूमिसे शम, सम और श्रमका जीवन सन्देश दिया। इसी दिन लिच्छवि वज्जी आदि गणतन्त्रोंने इकट्ठे होकर श्रमण महाप्रभुकी निर्वाण क्रियाकी और गणधर (गणेश) की ज्ञानलक्ष्मीकी पूजा की । दीप जलाकर मनमें सन्तोष किया कि संसारसे आज 'भावदीपक' बुझ गया पर हम उसी ज्योतिको इन द्रव्यद्वीपों द्वारा देखते रहेंगे। उस अमावस्याकी कालरात्रिमें महावीरके बमें सम्मिलित होनेवाले गणतन्त्राधिप सुर असुर आदिने दीपक जलाये थे और गणेशकी ज्ञान लक्ष्मीकी पजाकी थी जिसकी परम्परा आजतक गणेशपूजा और लक्ष्मी पूजनके रूपमें भारतीय सांस्कृतिक पवोंके इतिहासका समज्ज्वल आलोक पृष्ठ है। इस दिन अर्थीके आकारकी दीवाली बनानेका रिवाज भी इसी और संकेत करता है । लाजा और मिठाई बाँटना इस क्रियाका आवश्यक अंग है। आज जो विभिन्न प्रकारके पशु पक्षियों के खिलौने, आतिशबाजी आदिका रिवाज है वह क्रमशः भगवान्की धर्म सभामें पश पक्षियों तकके रहनेका तथा निर्वाणाग्निकी याद दिलाता है। कार्तिक कृष्णा त्रयोदशीको धन्वन्तरि पूजा उस घटनाकी याद दिलानेवाली है जब भगवान महावीरकी जीवरक्षाके लिए इस दिन बिहारके सभी धन्वन्तरि वैद्य जुड़े होंगे और उन्होंने प्रयत्न किया होगा कि महावीरकी जीवन रक्षा हो, पर आयुकी समाप्तिको रोकना स्वयं तीर्थङ्करके लिये भी सम्भव नहीं था । और चतुर्दशी जिस दिन महावीर निर्वाण हुआ लोग शोकसे विकल हो उठे उन्हें महावीरके बिना यह संसार 'नरक' के समान लगने लगा इसीलिये इसे 'नरक चतुर्दशी' संज्ञा दी गयी । अथवा यह संज्ञा साम्प्रदायिक वर्गने विद्वेष वश दी हो। अमावस्याकी शाम तक निर्वाण क्रिया सम्पन्न हुई और उस समय दीपक जलाये गये । सबने अपने घरोंकी शद्धि की, कूड़ा कर्कट निकालकर फेंका, पुराने बर्तन बदले और इस तरह शुद्धि क्रिया की जिसका प्रतीक प्रतिपदाके प्रातः लोग 'दरिद्र भगाने की क्रिया करते हैं । इसी समय लोगोंने अपने तराजू बाँट कलम शस्त्र आदि बदले और साफ किये। और अन्नकूट लगाकर मिठाइयाँ बाँटी, दान दिया। द्वितीयके दिन हर तरह शद्ध होकर बहिन-बेटियाँ अपने भाइयोंको नव-वर्षका टीका करती हैं । यम का कार्य-निर्वाण हो जानेके बाद चूँकि यह पहिली द्वितीया आती है अतः इसे 'यम द्वितीया' नाम दिया गया। इस तरह कार्तिक-कृष्णा त्रयोदशीसे कार्तिक शुक्ला दोज तकके सारे उत्सव महावीरकी निर्वाण-क्रिया शद्धि, नव वर्षारम्भ आदिकी पुण्य स्मृतियाँ हैं । यह समूचा पर्व महावीर निर्वाणक्रियाका प्रतीक है । ___ इस पर्वपर हमारा उत्तरदायित्व इसलिये विशेष रूपसे बढ़ जाता है कि इस दिन तीर्थङ्कर महावीर इस संसारमें नहीं रहे थे और हमारे पुरखाओंने दीप-ज्योति जलाकर प्रतिज्ञाएँ की थी कि जिस अहिंसा, समता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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