Book Title: Fulchandra Shastri Abhinandan Granth
Author(s): Jyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
Publisher: Siddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi

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Page 614
________________ चतुर्थखण्ड : ५७७ फलटन यह बीसा हुंबड समाजका केन्द्र समझा जाता है ऐसा होते हुये भी यदि आप अपने इस महत्वके स्थानको नहीं समझते हैं तो यह आपकी समाजका दुर्दैव ही कहना चाहिये । आपकी समाजमें फूट के कारण हो सकते हैं परन्तु वे इतने महत्वके नहीं कि जिनके पीछे आपको सर्वदाके लिये चिकट कर रहना ही चाहिये । यदि आप संख्या और बलमें अधिक हैं तो केवल इसको ही अपनी विजयका कारण बनाना बड़ी भारी भूल है ऐसा मेरा विश्वास । अपने विरोधीको उचित मार्गका विचार करके शांतिके मार्गका अन्वेषण करना आपका ही काम है। इसका उत्तरदायित्व विरोधी पक्षपर न होकर आपकी समाज पर ही है । मैं उत्सुकतापूर्वक उत्तरकी प्रतीक्षामें हूँ कि आप मेरे इस पत्रका किस दृष्टिसे स्वागत करते हैं । यदि आप पिछली सब बातोंको भूलकर एक सूत्रीपनाके मार्गपर चलते हुए दिखाई देंगे तो मेरा मस्तक विनयसे आपकी समाजके चरणोंमें नम्र हुये बिना नहीं रहेगा । ( २ ) श्री वात्सल्य गुणधारक धर्मपरायण सर्वोपमालायक श्रेष्ठिगुणविभूषित श्रेष्ठिवर्यं वीसाहुमड पंच शेठ गांधी रामचंद लक्ष्मीचंद तर्फे वहिवाटदार हीराचंद गांधी यांसी नातेपुतेहून पं० फूलचंद दरयावल शास्त्री यांचा सविनय जुहार. आपका पत्र मिला उसको बांचकर चातकको जैसे वर्षात के पानीसे और मयूरको मेघगर्जनासे आनंद होता है इतना आनंद हुआ। आपने मेरे लिये अनेक विशेषण लगा गौरवान्वित किया है इस सम्बन्धमें मुझे केवल इतना ही निवेदन करना है कि मैं आपका और आपकी समाजका एक तुच्छ सेवक हूँ । सेवाभाव के सिवाय और मेरे पास कुछ भी गुण नहीं है । आपने पिछली सब बातोंके बिसरनेके वावत लिखा यह जानकर मुझे और भी अधिक आनन्द हुआ । इससे आपकी समाज अपने पूर्वपदपर आरही है ऐसा मुझे विश्वास होने लगा है । फिर भी एक नम्र प्रार्थना और है । वह यह कि इतना सब कुछ होते हुए भी एकी क्यों नहीं होती हैं इसके कारणका भी आप और आपकी समाज पता लगा लेगी । समाजरूपी शरीरके किसी एक अंगमें दोष उत्पन्न हो जानेपर विचारपूर्वक उसका परिहार करना विवेकियोंका कर्तव्य है । हो सके तो इस विषयमें आप पत्र द्वारा खुलासा करेंगे । मेरे आने वावत आपने लिखा सो ठीक है दहिगांवका रथोत्सव हो जानेपर मैं अपने आनेकी सूचना दूँगा । परन्तु इसके साथ थोड़ी बहुत मेरी विनयसहित प्रार्थनाके सुननेकी जबाबदारी आपके और आपकी समाजके ऊपर पहुँच जाती है । मुझे विश्वास है कि आपकी धार्मिक समाज मेरी इस नम्र प्रार्थनाको ध्यान में रक्खेगी । मेरी ओरसे कृपया अपनी समाजके सभी बाल वृद्ध और तरुण मंडलीको नमस्कार कहिये और उनका चित्त 'धर्मीसौं गौवच्छ प्रीत समकर निजधर्म दिपावे' इस ओर आकर्षित करिये। मुझे भरोसा है कि वे इस तत्व के लिये सब कुछ सहन करनेके लिये तैयार होंगे । जिस प्रकार एक पत्र सेठ उसी प्रकार एक पत्र सेठ वीरचन्द ७२ Jain Education International ( ३ ) हीरालाल मोतीचन्द गांधी तर्फे बीसा हुंबड पंच को दरजी गांधी तर्फे वीसा हुँबड पंच फलटण के For Private & Personal Use Only पंडित फूलचन्द्र शास्त्री फलटणके नामसे दिया था नामसे भी दिया था । इन www.jainelibrary.org

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