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पं० टोडरमलजीके चरण चिन्हों पर • पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री, कटनी
श्रीमान् पं० फलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री विशिष्ट क्षयोपशम के धनी विद्धान् है । सन् २१ में जब मैं और पं० कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री काशी स्याद्वाद विद्यालयका अपना-अपना कोर्स पूरा कर मोरैना जैन सिद्धान्त विद्यालयमें जैनधर्मके विशिष्ट अध्ययनको आए तब उसी समय श्रीमान् पं० फूलचन्द्रजी भी (संभवतः साढ़मल से) मोरैना आए थे । इनके एक साथी थे पं० किशोरीलालजी । यद्यपि उस समय ये हमारी कक्षामें न थे पर आज तो हमसे कई कक्षाएँ आगे पार कर गये हैं । पंडितजी इस प्रकार हमारे बाल-सखा है। हमारा उनका स्नेह भावगत ६२ वर्षोंसे है । हमारा मुरैनाका कोर्स पूरा होनेके समय सन् २३ में एक विशिष्ट घटना विद्यालयमें हुई । विद्यालयके कुछ कार्यकर्ता व पदाधिकारियोंकी जाति तथा प्रान्त पक्षपात परक नीतिने एक अग्रवाल छात्रको जिसका नाम जगदीश था (जो अब डा. जगदीशचन्द्रके नामसे जैनाजैन विद्वत् गोष्ठीमें नक्षत्रकी तरह चमक रहा है। उसे निरपराध हो सुपरि० द्वारा बेतकी कड़ी बेंटसे सिरपर जोरोंकी मार मारी गई । संभवतः इस शकमें कि ये हमारी पार्टीकी जासूसी कर दूसरी पार्टीको बताएगा, जबकि ऐसा नहीं था, क्योंकि वह नीचे जहाँ इनकी पार्टीकी मीटिंग थी उस विद्यालय भवनकी मात्र घड़ीमें टाइम देखने गया था। उसकी कुल उम्र १२-१३ सालकी होगी । सिर फट गया और रक्त धारासे कपड़े तर बतर हो गये । अस्पतालमें इलाज हुआ। तत्कालीन अधिष्ठाताके पास इस दुर्घटनाकी सूचना दी गई। रक्तरंजित वस्त्र भी पार्सलसे भेजे गये ताकि घटनाकी गंभीरता उनकी समझमें आ जाय । परीक्षाएं चल रही थीं। अधिष्ठाता जी आये पर कोई पूछताछ न कर न्यायका गला घोंटकर चले गये । वह छात्र तथा उसे बचानेवाला धन्नालाल जमादार जो गोलालारे था दोनोंको विद्यालयसे निकाल दिया गया । इस विरोधमें गोलापूर्व, अग्रवाल, परवार, गोलालारे-दक्षिण प्रान्तीय आदि २८ छात्रों और दो अध्यापकोंने विद्यालय त्याग कर दिया। जिनमें एक पं० फलचन्द्र भी थे। अन्याय सहन करना इनकी प्रकृतिमें प्रारम्भसे ही न था। जबलपुरमें इस निमित्तसे नवीन 'शिक्षा मन्दिर' की स्थापना पूज्य वर्णोजी द्वारा हुई और उन छात्रों व पाठकोंको स्थान दिया गया । उक्त घटनाको हम सब लोगोंने कभी अखबारों में नहीं लिखा, समाजमें नहीं रखा आज तक यह इतिहास जो मोरैना विद्यालयके पतनका कारण हुआ गुप्त ही रखा इस भयसे कि गुरुवर्य स्व. पंडित गोपालदासजी वरैया का नाम विद्यालयके साथ जुड़ा है । अतः किसी भी प्रकार विद्यालयको क्षति न पहुँचे । कार्यकर्त्ता तो बदलते रहेंगे । इस सद्भावनासे सब मौन रहे । चूँकि पं० फूलचन्द्र की जीवनीसे इस घटनाका सम्बन्ध है। इस समय इसके जानकार और उस अन्यायको मौनपूर्वक सहन करनेवाले अब हम ५-६ व्यक्ति ही हैं। इसलिए इसका उल्लेख सहसा आ ही गया। मोरैना विद्यालयके पतनका कारण उक्त जातीय पक्षपात बना ।
पं० फूलचन्द्रजी उस समय कर्मकाण्ड गोम्मटसार पढ़ते थे अतः, शिक्षा मन्दिर जबलपुर उनकी नियुक्ति वर्णीजी द्वारा छात्रत्वके साथ पाठकत्वके पदपर भी हुई। पं. वंशीधरजी न्यायालंकारजी इस अध्यायमें प्रपीड़ित थे और सर्विस त्यागकर छात्रोंके साथ चले आये थे के पास अध्ययन करते थे और जीवकाण्ड तकके छात्रोंको पढ़ाते थे। बादका पूरा इतिहास जो पं० फूलचन्द्रजी की जीवनीसे संबद्ध है लम्बा है यहाँ उसका उल्लेख लेखको बढ़ायेगा अतः उसे यहीं छोड़ रहा हूँ।
छात्रावस्था पूर्णकर कार्य क्षेत्रमें उन्होंने २-३ वर्ष बाद ही पदार्पण किया। पं० कैलाशचन्द्रजीने अस्वस्थताके कारण जब काशी विद्यालय छोड़ा तब पं० फूलचन्द्रजीने उस पद को सम्हाला। कुछ समय बाद उससे विरत हुए और पं० कैलाशचन्द्रजी स्वस्थ होकर पुनः अपने पद पर आ गए । पं० फूलचन्द्रजी सदासे आगमके दृढ़ श्रद्धानी रहे । आगमोक्त वार्ता कहनेसे पीछे नहीं हटे। इस आगम सम्मत सिद्धान्त संरक्षण में उन्होंने अनेक बार-समाजके सुप्रसिद्ध विद्वानों तथा तत्कालीन जैनाचार्योसे भी टक्कर ली, आजीविका विहीन हये पर सिद्धान्त पक्ष नहीं छोड़ा।
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