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चतुर्थखण्ड : ३९७
जहाँ तक मेरा अनुमान है कि ठिकानेसारके उक्त उल्लेखमें 'तार काल' पदसे उसके रचयिताको 'जिन तारण तरण काल' ही इष्ट है। वह मानते हैं कि दीर निर्वाणसे १९७५ वर्ष गत होने पर स्वामीजीका जन्म हुआ। जैसा कि पट्टावलियोंसे ज्ञात होता है कि वीर जिनके निर्वाणलाभके बाद ४७० वर्ष गत होने पर विक्रम सम्वत् प्रारम्भ हुआ । अतः १९७५ वर्षमेसे ४७० वर्ष कम कर देने पर वि० सं० १५०५ में स्वामीजीका जन्म हुआ यह निश्चित होता है । १९७५-४७० = १५०५ वि० सं० को जन्म |
अब इस सम्वत् के किस माहकी किस तिथिको स्वामीजीका जन्म हुआ, यह देखना है । छद्मस्थवाणीमें स्वामीजी के शरीरत्यागके विषयमें यह उल्लेख आता है
"संवत पन्द्रह सौ बहत्तर वर्ष जेठ वदी छठकी रात्रि सातऍ शनिवार दिन जिन तारण तरण शरीर छूटो ।"
इससे इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि स्वामीजीने जेठ वदी ७ शनिवार वि० सं० १५७२ को इहलीला समाप्त की ।
अब यह देखना कि इस तिथि तक स्वामीजीका कितना काल वर्तमान पर्याय में व्यतीत हुआ । इसके लिये इसी उपस्थवाणी के प्रथम अध्याय पर दृष्टिपात करनेसे विदित होता है कि स्वामीजी कुल ६६ वर्ष पांच माह पन्द्रह दिन तक वर्तमान पर्यायमें रहे । इसलिये इस कालको शरीर त्यागके कालमेंसे घटा देने पर जन्मकाल अगहन सुदी ७ गुरुवार वि० सं० १५०५ आ जाता है। क्योंकि अगहन सुदी ७ से जेठ बदी ७ तक गणना करने पर कुल ५ माह १५ दिन होते हैं तथा उक्त जन्मतिथिसे शरीरत्यागकी तिथि तक वर्षोंकी गणना करने पर ६६ वर्ष होते हैं ।
यद्यपि अगहन सुदी ७ से जेठ वदी ७ तक कुल ५ माह १६ दिन होते हैं। परन्तु स्वामीजीने जेठ वदी ६ की रात्रिमें ही शरीर त्याग कर दिया था, इसलिये छद्मस्थवाणीमें जो ५ माह १५ दिनका उल्लेख है वह ठीक है ।
छद्मस्थवाणीमें एक वह उल्लेख दृष्टिगोचर होता है
सिद्ध ध्रुव उन्नीस सौ तैंतीस वर्ष दिन रयनसे तीन उत्पन्न ।
इसमें प्रथम अंश 'सिद्ध ध्व' है, द्वितीय अंश 'उन्नीस सौ तैंतीस वर्ष दिन रयनसे' है और तीसरा अंश 'तीन उत्पन्न' है।
स्वामीजीका जन्म वीर नि० सम्बत्से १९७५ वर्ष गत होने पर हुआ था, यह हम पहले ही बतला आये हैं तथा प्रकृत वचन उन्नीस सौ तेंतीस वर्षका उल्लेख करना है । इसलिये प्रश्न होता है कि किस सम्वत्से १९३३ वर्ष बाद ? विक्रम संवत्से तो हो नहीं सकता, क्योंकि विक्रम सम्वत्से १९३३ के कई शताब्दी पूर्व ही स्वामीजी का जन्म हो चुका था । अतः परिशेष न्यायसे इस कालकी गणना वीर निर्वाण सम्वत्से ही की जानी चाहिये । उक्त उल्लेखमें प्रथम अंश 'सिद्ध धुव' है। मालूम पड़ता है कि छद्मस्थवाणीमें 'सिद्ध धुव' पद द्वारा वीर जिनका निर्वाण ही अपेक्षित है । अतः पूरे उल्लेखका यह अर्थ हुआ कि वीर निर्वाण सम्वत्से १९३३ वर्ष गत होने पर स्वामीजी उत्पन्न हुए। १९७५ मेसे १९३३ कम करनेपर ४२ लव्य जाते हैं. अतः इस उल्लेखमें जिन तीनके उत्पन्न होने का निर्देश किया गया है वे तीन स्वामीजीके जन्म से ४२ वर्ष पूर्व उत्पन्न हुए,
यह
निश्चित होता है । पर वे तीन कौन ? यह प्रश्न फिर भी शेष रहता है ।
यदि स्वामीजी के जन्म के समय माता-पिताकी आयु लगभग ४२ वर्षकी थी, यह अर्थ लिया जाता है तो यह प्रश्न होता है कि वह तीसरा कौन व्यक्ति होगा जिसका स्वामीजीने जन्मसे ४२ वर्ष पूर्व जन्म हुआ होगा ।
१. श्री ता० त०] अध्यात्मवाणी पृ० ४०९ ।
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