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५५८ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ
बुन्देलखण्डको जैन समाजने जैसे जैन-संस्कृतिके अन्य साधनोंके संरक्षणकी ओर विशेष ध्यान दिया है वैसे ही उसने शिक्षा प्रचारकी ओर भी विशेष ध्यान दिया है। वर्तमान समयमें संस्कृत, प्राकृत और धार्मिक शिक्षाके प्रचारका बन्देलखण्ड गढ़ है। यहाँके बहतसे गाँवों में आपको धार्मिक और संस्कृत पाठशालाएँ दष्टिगोचर होंगी । इस विषयमें पूज्य श्री गणेशकीर्ति मनिराज (पज्य श्री गणेशप्रसादजी वर्णी) चिरस्मरणीय है हो। पज्य ब्र० मोतीलालजी वर्णी, श्रेष्ठिवर्य लक्ष्मीचन्दजी बमराना, श्रेष्ठिवर्य मथरादासजी ललितपुर और सिंघई नायूरामजी बीना-इटावा आदिके नाम भी विशेष रूपसे उल्लेखनीय हैं। इन महानुभावोंने इस क्षेत्रमें जो महान् सेवा की है वह सदा काल अविस्मरणीय रहेगी।
बुन्देलखण्डका प्रत्येक गृहस्थ अपनी उस आचार-विचार और पूजा विधिको अक्षुण्ण बनाये रखेगा जिसने अभी तक उसे अनुप्राणित ही नहीं किया, किन्तु सद्गृहस्थ भी बनाये रखा है । बुन्दे खण्ड धन्य है और उसकी मोक्षमार्गके अनुरूप आचार-विचार और उपासना विधि भी धन्य है। बुन्देलखण्डका जैन-संस्कृतिके लिए जो यह योगदान है वह पूरे जैन समाजको अनुप्राणित करता है इसमें सन्देह नहीं ।
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