Book Title: Fulchandra Shastri Abhinandan Granth
Author(s): Jyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
Publisher: Siddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi

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Page 606
________________ चतुर्थ खण्ड : ५६९ विचार किया जावे तो यह बिल्कुल स्पष्ट है कि आजका प्रश्न दूसरा कुछ न होकर पेटका प्रश्न है। बहुतसे भाई धर्म कारण और समाज सुधारको आगे करते हैं परन्तु जिन्होंने सूक्ष्मतासे विचार किया होगा उन्हें यह बात स्वीकार करने में थोड़ा भी संकोच न होगा कि ये दोनों प्रश्न भी उन विचारे दीन दुबलोंसे कुछ भी सम्बन्ध नहीं रखते हैं। इन विषयोंका आजका वाद श्रीमंतोंसे या उनसे सम्बन्ध रखनेवाले कुछ शिक्षितोंसे ही सम्बन्ध रखता है । हमने धर्मकारण और समाजसुधारका कितना ही गहरा विचार क्यों न किया हो परन्तु इन प्रश्नोंका हल होना तब तक असंभव है जबतक कि बहुजन समाजका आर्थिक प्रश्न हल नहीं हो जाता है। कुछ भाई समाज सुधारका प्रयत्न करते हैं परन्तु उन्हें इस बातका थोड़ा भी पता नहीं है कि जबतक उनका कार्यक्रम बहुजन समाजके आर्थिक प्रश्नको हल करनेवाला नहीं होगा तब तक हमें किसी भी कार्यक्रममें सफलता नहीं मिल सकती है। माना कि आपने एक श्रीमंतको विवाहमें फिजूल खर्चीसे बचा दिया। अब आप देखेंगे कि उस श्रीमंतकी खर्चकी गरज कम हो गई। इससे उसके पास जो अधिक पूँजी शिल्लक रहेगी उससे उसे अर्थशोषणके लिये सहायता ही मिलेगी इससे बहुजन समाजका कौनसा फायदा हो सकेगा। इसके उत्तरमें एक मुद्दा उपस्थित किया जा सकता है कि श्रीमंतोंने इन सामाजिक कामोंमें फिजूल खर्जी बन्द कर दी तो गरीबोंको भी किसी हदतक उन सामाजिक कामोंमें कम खर्च करना पड़ेगा गरीबोंका यही सबसे बड़ा फायदा है परन्तु इस समय प्रश्न तो पेटका है, जिन्हें भरपूर पेटके लिये ही नहीं मिलता है । उनको तुम्हारे इन सामाजिक सुधारोंसे क्या फायदा। इन सुधारोंसे थोड़ा बहत यदि फायदा होगा तो केवल मध्यमवर्गका ही होगा । परन्तु आजकी परिस्थितिको लक्ष्यमें रखकर हमें सबसे पहिले उन गरीबोंका प्रश्न हल करना है जो आज दरदरके भिखारी बनते जा रहे हैं। दूसरे वर्तमानके कार्यक्रमसे श्रीमंतोंका वर्चस्व कमी नहीं होता है । आज जरूरत तो इस बातकी है कि सामाजिक रचना ही इस प्रकारकी हो जिसमें दूसरे प्रश्नोंको गौण करते हुए आथिक प्रश्नके हल करनेकी प्रधानता रक्खी जावे। हम यह जानते हैं कि बहुतसे भाई हमारे इस प्रश्नके उपस्थित करनेपर चिढ़ेंगे। वे कुछका कुछ अर्थ भी करने लगेंगे परन्तु उन्हें यह ध्यानमें रखना चाहिए कि इस पेटके प्रश्नको आज हम यदि सुलझाने का प्रयत्न नहीं करेंगे तो वह दिन बहुत दूर नहीं है जब कि हमें उसके हल करनेके लिये मजबूर होना पड़ेगा। हमारे शिक्षालयोंमें भी इस प्रकारकी शिक्षा नहीं दी जाती है कि जो आर्थिक प्रश्नके हल करनेमें समर्थ हो। इसीलिये शिक्षालयोंसे शिक्षित निकल कर भी वे सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करनेके लिये और अपनी शिक्षाका स्वतःके लिये तथा बहजन समाजके लिये उपयोग करनेके लिये असफल सिद्ध होते हैं। अशिक्षित गरीबोंका तो पूछना ही क्या है। इस तरह ऊपरके विवेचनसे यह भली भाँति सिद्ध हो जाता है कि आजका प्रश्न और सब प्रश्नोंकी अपेक्षा पेटका है। आज संपूर्ण समाजको एकचित्त होकर इसीके हल करनेके लिये ही प्रयत्न करना चाहिये । ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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