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धवलादि ग्रन्थोंके उद्धारका सत्प्रयत्न और उसमें बाधायें
जबकि इस बीसवीं शताब्दीमें प्रत्येक समाज और जातिका लक्ष्य अपने धर्म और समाजके प्राचीन वैभवकी समग्र कथाको बहुजन समाजके समक्ष रखकर उसको प्रकाशमें लानेका है ऐसी हालत में हमारी जैन समाजका इधर संगठित प्रयत्नका न होना यह दुर्भाग्यकी बात नहीं तो और क्या है ? फिर भी कुछ धर्मात्मा इस ओर यदि प्रयत्न भी करते हैं तो उनको समाज और पंचायतोंकी जितनी सहायता मिलनी चाहिये वह न मिलकर बाधायें ही उत्पन्न की जाती हैं । अभी हाल श्रीमान् धर्मवीर, दानवीर, जिनवाणी भूषण सेठ रावजी सखाराम दोशी सोलापुर वालोंके साथ मूलविद्रीकी पंचायत और भट्टारकने इस सम्बन्धमें जो अयोग्य व्यवहार किया वह निन्दाके योग्य ही है । समाजको यह विदित हैं कि मूलविद्रीके भंडार में धवलादि ग्रन्थ विद्यमान हैं । मूलविद्रीकी पंचायत उनकी मालिक न होकर रक्षक है परन्तु आज वही पंचायत उनकी रक्षक न होकर भक्षक बन रही है । वहाँ पंच और भट्टारकने समस्त जैन समाज के प्रतिनिधि स्वरूप श्रीमान् उक्त सेठजी सा० के साथ जो व्यवहार किया है इससे यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है । धर्मस्थलके श्रीमान् सेठ मजय्या हेगड़ेका व्यवहार तो और भी चमत्कारपूर्ण दिखाई दिया । आप जैसे शिक्षित प्रतिष्ठित पुरुषने तो इस कामका मुखियापन ग्रहण करके धवलादि ग्रन्थोंके प्रकाशमें लानेका श्रेय संपादन करना चाहिये था । परन्तु दूसरे लोगोंका बहाना लेकर आप जैसे प्रसिद्ध पुरुष श्रीमान् सेठजी सा०के साथ धर्मका सौदा करने लगे इसे क्या कहा जावे । भट्टारकका व्यवहार तो और भी निन्दा योग्य है । जिसका एक बार भी श्री सेठ रावजी सखाराम दोशीके साथ परिचय हुआ होगा वह भी उनकी नम्रता निगर्वता और सहानुभूति आदि गुणोंको देखकर उनका – श्रद्धालु बने बिना नहीं रहेगा । परन्तु मूल विद्रीके भट्टारकको अपने भोजन के आगे सेठजी सा०से महत्वपूर्ण विषयमें बातचीत करनेका भी अवसर प्राप्त न हो सका यह सेठजी सा० का अपमान न होकर सारी जैन समाजका अपमान समझना चाहिये । यह निश्चित है कि मूलविद्रीकी पंचायत और भट्टारकने आज कितनी ही अरेरावीका व्यवहार किया तो भी उसका आज कोई भी समर्थक न होकर निन्दा ही करेगा । हम तो आशा करते हैं कि अब भी समय है कि मूलविद्रीकी पंचायत, श्रीमान् सेठ भज्जय्या हेगड़े और भट्टारकको सारासारका विचार करके धवलादि ग्रन्थोंके प्रकाशमें लानेका श्रेय संपादन करना चाहिये । धर्मात्मा पुरुष यदि धर्मका सौदा करने लगे तो फिर धर्मको आश्रय मिलना ही कठिन हो जावेगा ।
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