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४४२ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ
पदानुसरण इन्होंने स्वरचित कारिकाओं में बहुलतासे किया है। रचना ७वीं ८वीं शताब्दिसे बहुत पहलेकी नहीं होनी चाहिए। उदाहरण देखिए ।
इससे भी ऐसा प्रतीत होता है कि इनकी यह
व्योम्नीन्दुं चिक्रमिषेन्मेरुगिरिं पाणिना चिकम्पयेत् । गत्यानिलं जिगीषेच्चरमसमुद्रं पिपासेच्च ॥
इन्होंने अपनी रचनामें यह भी बतलाया है कि जिस जिनवचन महोदधिपर अनेक भाष्य लिखे गये उसको पार करनेमें कौन समर्थ है । यह तो सुनिश्चित है कि श्वेताम्बर आगम साहित्यपर जो भाष्य लिखे गये वे सब सातवीं शताब्दिके पूर्व के नहीं है । अतः यह स्वयं उन्हीं के शब्दोंसे स्पष्ट हो जाता है कि तत्त्वार्थाधिगम मान्य सूत्रपाठ और भाष्य ये दोनों श्वेताम्बर आगमोंपर लिखे गये भाष्योंके पूर्वकी रचनाएँ नहीं ह ।
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यह श्वेताम्बर परम्परामान्य तत्त्वार्थाधिगमसूत्र और उसके भाष्यकी स्थिति है । इनके ऊपर हरिभद्र और सिद्धसेनगणिक विस्तृत टीकाएँ उपलब्ध होती हैं । ये दोनों टीकाकार भट्ट अकलंक देवके कुछ काल बाद हुए प्रतीत होते हैं, क्योंकि इनकी टीकाओं में ऐसे अनेक उल्लेख पाये जाते हैं जो तत्त्वार्थवार्तिकभाष्य के आभारी हैं । इनके बाद ऐसी छोटी बड़ी और भी अनेक टीकाएँ समय- समयपर लिखी गई हैं जिनपर विशेष ऊहापोह प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलालजीने तत्त्वार्थसूत्रके विवेचनमें किया है ।
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