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५४८ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्रो अभिनन्दन ग्रन्थ
करते हुए लिखा है कि ( १ ) पहले एक- दूसरेका चिन्तन होना, (२) पीछे एक-दूसरेको देखनेकी इच्छा होना, (३) पीछे एक-दूसरे के प्रति निश्वास छोड़ना, (४) पीछे ज्वर होना, (५) पीछे दाह होना, (६) पीछे कामकी रुचि होना, (७) पीछे मूर्च्छा होना. (८) पीछे उन्माद होना, (९) पीछे एक-दूसरेके बिना जीनेमें सन्देह होना और (१०) पीछे एक-दूसरेके बिना मरण हो जाना ।
यह दस प्रकारका अब्रह्म है । जो पुरुष या महिला अपनेको भूलकर कामके पीछे लगते हैं उनकी यह दशा होती है । इसीलिए एक कविने लिखा भी है कि
बलवान् इन्द्रियग्रामो विद्वांसमपकर्षति ।
चाहे पण्डित हो या मुनि जो पञ्चेन्द्रियोंके विषयोंमें उलझता है उसकी यह दशा होती है । इसलिये एक-दूसरको स्पर्श करनेकी बात तो छोड़िये, एक-दूसरेको रागभावसे देखना भी जीवनको मटियामेट करनेवाला है । अतः ब्रह्मचर्यकी जो नौ वाड़े आगममें लिखी हैं उनको जीवनका अपना अंग बनाते हैं उनका जीवन ही सफल होता है । ब्रह्मचर्यकी वे नौ वाड़े इस प्रकार हैं
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(१) पुरुष और महिला में एक-दूसरेको सेवन करनेकी अभिलाषा न करना, (२) किसी भी प्रयोजनसे एक-दूसरेके अंगोंको स्पर्श नहीं करना, (३) पुष्ट और गरिष्ठ रसका सेवन नहीं करना, (४) एक-दूसरे के द्वारा काममें लाये गये शय्या आदिका सेवन नहीं करना, (५) एक-दूसरेके मुख व शरीरके कामको बढ़ानेवाले अंगोंको देखनेकी इच्छा नहीं करना, (६) एक-दूसरेका सत्कार - पुरस्कार करना, (:) पहले हम कैसे भोग भोगते थे इसको याद नहीं करना, (८) आगे वे भोग कैसे प्राप्त होंगे इनकी अभिलाषा नहीं करना और ( ९ ) अभीष्ट विषयोंका सेवन नहीं करना ।
ये ब्रह्मचर्यकी नौ बाड़ें हैं। जैसे खेतकी बाड़ खेतमें बोये हुए धान्य की रक्षा करनेमें निमित्त है वैसे ही जो गृहस्थ पुरुष या महिला सदाचारपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करना चाहते हैं उन्हें ब्रह्मचर्यकी इन नौ वाड़ोंको अवश्य पालना चाहिये । मात्र इसी प्रयोजनको ध्यान में रखकर महिलाओं को जिनबिम्बका प्रक्षाल अभिषेक नहीं करना चाहिये यह आगमकी आज्ञा है । पूजन, स्वाध्याय और सामायिक आदि करते समय जब अपने भाव ठीक नहीं रहते, उनमें विकृति आ जाती है तब प्रक्षाल - अभिषेक करते समय किसी भी महिलाके परिणाम ठीक रहे आयेंगे यह वह स्वयं नहीं जान सकती, अतः महिलाको जिनमूर्तिका प्रक्षाल आदि ऐसे काम नहीं करना चाहिये, यही राजमार्ग है ।
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