________________
समयसारकलशकी टीकाएँ
राजस्थानके जिन प्रमुख विद्वानोंने आत्म-साधनाके अनुरूप साहित्य आराधनाको अपना जीवन अर्पित किया है उनमें कविवर राजमल्लजीका नाम विशेष रूपसे उल्लेखनीय है। इनका प्रमुख निवासस्थान ढूंढाहड़ प्रदेश और मातृभाषा हुँढारी रही है । संस्कृत और प्राकृत भाषाके भी ये उच्चकोटिके विद्वान थे। सरल बोधगम्य भाषामें कविता करना इनका सहज गुण था। इन द्वारा रचित साहित्यके अवलोकन करनेसे विदित होता है कि ये स्वयंको इस गुणके कारण 'कवि' पद द्वारा संबोधित करना अधिक पसन्द करते थे । कविवर बनारसीदासजीने इन्हें 'पाँडे' पद द्वारा भी सम्बोधित किया है। जान पड़ता है कि भट्टारकोंके कृपापात्र होनेके कारण ये या तो गृहस्थाचार्य विद्वान थे, क्योंकि आगराके आसपास क्रियाकाण्ड करनेवाले व्यक्तिको आज भी 'पाँडे' कहा जाता है। या फिर अध्ययन अध्यापन और उपदेश देना ही इनका मुख्य कार्य था। जो कुछ भी हो, थे ये अपने समयके मेधावी विद्वान कवि ।
जान पड़ता है कि इनका स्थायी कार्य क्षेत्र वैराट नगरका पार्श्वनाथ जिनालय रहा है। साथ ही कुछ ऐसे भी तथ्य उपलब्ध हए हैं जो इस बातके साक्षी हैं कि ये बीच-बीच में आगरा, मथुरा और नागौर आदि नगरोंसे भी न केवल अपना सम्पर्क बनाये हुये थे बल्कि उन नगरोंमें भी आते-जाते रहते थे। इसमें संदेह नहीं कि ये अति ही उदाराशय परोपकारी विद्वान कवि थे। आत्म-कल्याणके साथ इनके चित्तमें जनकल्याणकी भावना सतस जागृत रहती थी। एक ओर विशुद्धतर परिणाम और दूसरी ओर समीचीन सर्वोपकारिणी बुद्धि इन दो गुणोंका सुमेल इनके बौद्धिक जीवनकी सर्वोपरि विशेषता थी। साहित्यिक जगतमें यही इनकी सफलताका बीज है।
ये व्याकरण, छन्दशास्त्र, स्यावाद विद्या आदि सभी विद्याओं में पारंगत थे । स्याद्वाद और अध्यात्मका तो इन्होंने तलस्पर्शो गहन परिशीलन किया था। भगवान् कुन्दकुन्द-रचित समयसार और प्रवचनसार प्रभृति प्रमुख ग्रन्थ इन्हें कण्ठस्थ थे। इन ग्रन्थों में प्रतिपादित अध्यात्मतत्त्वके आधारसे जनमानसका निर्माण हो इस सदभिप्रायसे प्रेरित होकर इन्होंने मारवाड़ और मेवाड़ प्रदेशको अपना प्रमुख कार्य क्षेत्र बनाया था। जहाँ भी ये जाते, सर्वत्र इनका सोत्साह स्वागत होता था। उत्तरकालमें अध्यात्मके चतुर्मुखी प्रचारमें इनकी साहित्यिक व अन्य प्रकारकी सेवाएँ विशेष कारगर सिद्ध हुईं।
कविवर बनारसीदासजी वि० १७ वीं शताब्दीके प्रमुख विद्धान् हैं। जान पड़ता है कि कविवर राजमल्लजीने उनसे कुछ ही काल पूर्व इस बसुधाको अलंकृत किया होगा। अध्यात्मगंगाको प्रवाहित करनेवाले इन दोनों मनीषियोंका साक्षात्कार हुआ है ऐसा तो नहीं जान पड़ता, किन्तु इन द्वारा रचित जम्बूस्वामीचरित और कविवर बनारसीदासजीकी प्रमुख कृति अर्द्ध कथानकके अवलोकनसे यह अवश्य ही ज्ञात होता है कि इनके इह लीला समाप्त करनेके पूर्व ही कविवर बनारसीदासजीका जन्म हो चुका था। रचनाएँ
___ इनकी प्रतिभा बहुमुखी थी इसका संकेत हम पूर्वमें ही कर आये हैं। परिणामस्वरूप इन्होंने जिन ग्रन्थोंका प्रणयन किया या टोकाएँ लिखीं व महत्त्वपूर्ण है। उनका पूरा विवरण तो हमें प्राप्त नहीं, फिर भी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org