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चतुर्थ खण्ड : ४२५
नय हैं और ऋजुसूत्र आदि चार पर्यायार्थिक नय हैं । इस विषयमें दिगम्बर परम्परामें कहीं किसी प्रकार मतभेद दिखलाई नहीं देता । कषायप्राभृतचूर्णिसूत्रोंमें सर्वत्र ऋजुसूत्रनयका पर्यायार्थिकनयमें ही समावेश करते हैं । फिर भी उक्त (श्वे ) मुनिजीने अपनी प्रस्तावना में यह उल्लेख किस आधारसे किया है कि 'कषायप्राभूतचूर्णिकार ऋजुसू नयको द्रव्यार्थिकनय स्वीकार करते हैं । यह समझके बाहर है। उक्त कथनकी पुष्टि करनेवाला उनका वह वचन इस प्रकार है- 'अहीं कषायप्राभृत चूर्णिकार ऋजुसूत्रनयनो द्रव्यार्थिकनयमां समावेश करवा द्वारा श्वेताम्बराचार्योनो सैद्धान्तिक परम्पराने अनुसरे छे कारणके श्वेताम्बरोंमें सैद्धान्तिक परम्परा ऋजुसूत्रनयनो द्रव्यार्थिक नयमां समावेश करे छे. '
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