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महाबंध : एक अध्ययन
१. षट्खण्डागमका मूल आधार और विषयनिर्देश
चौदह पूर्वोमें अग्रायणीय पूर्व दूसरा है। इसके चौदह अर्थाधिकार है । पाँचवाँ अर्थाधिकार चयनलब्धि है, वेदनाकृत्स्नप्राभूत यह इसका दूसरा नाम है। इसके चौबीस अर्थाधिकार हैं। जिनमेंसे प्रारम्भके छह अर्थाधिकारों के नाम है-कृति, वेदना, स्पर्श, कर्म, प्रकृति और बन्धन। इन्हीं छह अर्थाधिकारोंको प्रकृत षट्खण्डागम सिद्धान्तमें निबद्ध किया गया है। मात्र चूलिका अनुयोगद्वार सहित जीवट्ठाण इसका अपवाद है। एक तो जीवस्थान चूलिकाकी सम्यक्त्वोत्पत्ति नामक आठवी चूलिका दृष्टिवाद अंगके दुसरे सूत्र नामक अर्थाधिकारसे निकली है । दूसरे गति-आगति नामक नौवीं चूलिका व्याख्याप्रज्ञप्तिसे निकली है।
यह षट्खण्डागम सिद्धान्तको प्रातःस्मरणीय आचार्य पुष्पदन्त भूतब लिने किस आधारसे निबद्ध किया था इसका सामान्य अवल कन है। प्रत्येक खण्डका अन्तः स्पर्श करने पर विहित होता है कि परमागममें बन्धन अर्थाधिकारके बन्ध, बन्धक, बन्धनीय और बध विध न नामक जिन चार अर्थाधिकारोंका निर्देश किया गया है उनमेसे बन्ध नामक अर्थाधिकारसे प्रारम्भकी सात चूलिकाएं निबद्ध की गई है। इन सब चूलिकाओंमें प्रकृतमें उपयोगी होनेसे कर्मोंकी मूल व उत्तर प्रकृतियोंको उस उस कर्मकी उत्तर प्रकृतियोके बन्ध व अधिकारी भेदसे बननेवाले स्थानोंको, कर्मोंकी जघन्य व उत्कृष्ट स्थितियोंको तथा गति भेदसे प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्ति के सन्मख हए जीवोंके बंधनेवाली प्रकृतियोंसम्बन्धी तीन महादण्डकोंको निबद्ध किया गया है।
षट्खण्डागमका दूसरा खण्ड क्षुल्लक बन्ध है। इसमें सब जीवोंमें कौन जीव बन्धक है और कौन जीव अबन्धक है इसका सुस्पष्ट खुलासा करना प्रयोजन होनेसे बन्धक नामक दूसरे अर्थाधिकारको निबद्ध कर जो जीव बन्धक हैं वे क्यों बन्धक हैं और जो जीव अबन्धक हैं वे क्यों अबन्धक है इसे स्पष्ट करने के लिये चौदह मार्गणाओंके अवान्तर भेदोसहित सब जीव कर्मके उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशमसे यथासम्भव बद्ध और अबद्ध होते हैं इसे निबद्ध किया गया है। आगे छठवें खण्डमें बन्धनके चारों अर्थाधिकारोंको निबद्ध करना प्रयोजन होनेसे इस खण्डको क्षुल्लक बन्ध कहा गया है। इस खण्डमें उक्त दो अनुयोगद्वारोंको छोड़कर अन्य जितने भी अनुयोगद्वार निबद्ध किये गये हैं, प्रकृतमें उनका स्पष्टीकरण करना प्रयोजनीय नहीं होनेसे उनके विषयमें कुछ भी नहीं लिखा जा रहा है ।
षट्खण्डागमका तीसरा खण्ड बन्ध स्वामित्वविचय है। यद्यपि क्ष ल्लक बन्धमें सब जीवोंमेंसे कौन जीव बन्धक है और कौन जीव अबन्धक है इसे स्पष्ट किया गया है पर वहाँ अधिकारी भेदसे बन्धको प्राप्त होने वाली प्रकृतियोंका नाम निर्देश नहीं किया गया है और न यही बतलाया गया है कि उक्त जीव किस गुणस्थान तक किन प्रकृतियोंका बन्ध करते हैं और उसके बाद वे उन प्रकृतियोंके अबन्धक होते हैं यह सब ओघ और आदेशसे सप्रयोजन स्पष्ट करनेके लिए इस खण्डको निबद्ध किया गया है।
षट्खण्डागमका चौथा खण्ड वेदना है और पाँचवें खण्डका नाम वर्गणा है। इन दोनों खण्डोंमेंसे प्रथम खण्डमें कर्म प्रकृति प्राभूतके कृति और वेदना अर्थाधिकारोंको तथा दूसरे खण्डमें स्पर्श, कर्म और प्रकृति अर्थाधिकारोंके साथ बन्धन अर्थाधिकारके बन्धनीय अर्थाधिकारको निबद्ध किया गया है ।
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