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३७४ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ
करके उसके भीतर क्या है यह हम नहीं देख सके । फिर भी उन भाइयोंका कहना था कि मन्दिरके भीतर जो देवीकी मूर्ति है वह पद्मावती देवीकी ही है।
(ग) दूसरा ब्रह्ममंदिर जिसे रुक्मिणी मठ भी कहा जाता है, वह भी छठी सदीका है । यह कुण्डलपुर ग्रामके परिसर में अवस्थित है। इसे रुक्मिणी मठ क्यों कहा जाता है, इसके पीछे एक इतिहास है । उसकी यहाँ विशेष चर्चा न करके मात्र इस मन्दिरका परिचय देना ही यहाँ मख्य है । यह ब्रह्मा मन्ति
यहाँ मुख्य है । यह ब्रह्म मन्दिर जीर्णशीर्ण अवस्थामें है। वहाँ पहले जो जिनबिम्ब विराजमान थे, उन्हें यहाँसे ले जाकर बड़े बाबाके मन्दिरमें स्थापित कर दिया गया है । इस मंदिरके मध्य भागमें ३ हाथ ४ अंगुल चौड़ा शिलापट्ट है। उसमें अंकित आम्रवृक्षके मलमें भगवान नेमिनाथ सहित यक्ष-यक्षिणीकी एक मति प्रतिष्ठित है। यक्षिणीकी गोदीमें बालक है और दूसरा बालक आम्रवृक्षपर चढ़ता हुआ दिखाया गया है।
इस ब्रह्ममन्दिर सिरदल रखा हुआ है। उसमें भी जैन मूर्तिर्या अंकित हैं। बड़े बाबाका मन्दिर तो समाजके अधिकारमें होनेसे उसकी भले प्रकार देख-रेख होती रहती है । परन्तु इन दोनों ब्रह्म मन्दिरोंकी नहीं होती । यद्यपि कुण्डलगिरिकी तलहटीमें जो ब्रह्ममंदिर है, उस पर अन्य भाइयोंने कब्जा अवश्य कर रखा है, परन्तु दूसरे ब्रह्म मन्दिरके समान इसकी भी समुचित देखरेख नहीं हो पाती । न तो समाजका इस ओर ध्यान है और न पुरातत्त्व विभागका ही।
(घ) बड़े बाबाके मन्दिरका जो गर्भालय है उससे लग कर जो मण्डप है उसके मध्यमें एक चबूतरा बना हआ है । उस पर मध्यमें पुराने चरण चिह्न विराजमान हैं। वे कितने प्राचीन है, यह कहना कठिन है। पर जिस पाषाण खण्डको काटकर उन्हें बनाया गया है उसे देखते हुए ये चरण चिन्ह हजार आठ सौ वर्ष पुराने नियमसे होने चाहिये, ऐसा प्रतीत होता है। सम्भव है कि यहाँ पर सन् ११४० में महाचन्द्र नामके जो पट्टधर आचार्य हो गये हैं उनके अनुरोध पर हो, यह निश्चय होनेसे कि यही वह कुण्डलगिरि है जहाँसे श्रीधर स्वामी मोक्ष गये हैं, इन चरणचिह्नोंकी स्थापनाकी गयी है । उन पर 'कुण्डलगिरौ श्रीधर स्वामी' यह लिखा होनेसे भी यही प्रतीत होता है कि उन्होंने ही श्रीधर स्वामीके इन चरण चिह्नोंकी स्थापना कराई होगी। श्री पं. बलभद्रजीने 'मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ' के पृ० १९३ पर जो इन चरण चिह्नोंको १२-१३वीं शताब्दीका सूचित किया है, उससे भी इस बातकी सत्यता प्रमाणित होता है।
(च) जैसा कि हम पहले सूचित कर आये हैं कि दोनों ब्रह्ममन्दिरोंमें जो प्रतिमाएँ लाई गई थीं उनमेंसे बहुत-सी प्रतिमायें तो गर्भालयमें ही स्थापित कर दी गई हैं। उनके आकार और निर्माण शैलीको देखते हुए उक्त कथनको स्वीकार कर लेने में हमें कोई आपत्ति नहीं दिखाई देती ।ये सब मतियाँ पद्मासन संख्यामें १४ है
और प्रत्येक पुष्पवर्णी देव और चरमवाहक हैं । ये सब मूर्तियाँ कमसे कम उतनी प्राचीन प्रतीत होती हैं जितने प्राचीन ब्रह्ममन्दिर हैं।
(छ) इनके सिवाय बरंट आदि स्थानोंसे लाई गई मूर्तियाँ अन्य मन्दिरोमें स्थापित की गई हैं। उनमें खड्गासन और पद्मासन दोनों प्रकारकी प्रतिमायें हैं। उदाहरणार्थ ८, ९, ११, १३, १४, १६, १९, २०, २९, ४० और ५० संख्याक जिनमन्दिरोंमें देशी पाषाण निर्मित प्रतिमायें विराजमान है। इसप्रकार ३, ५ और ६ संख्यक मंन्दिरोंमें देशी पाषाण निर्मित चरणचिह्न पधराये गये हैं।
(ज) इन सब प्रमाणोंपर दृष्टिपात करनेसे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस क्षेत्रका निर्माण ६वी सदीसे पहले ही हो गया था। यह ठीक है कि यहाँके मन्दिरोंमें बरंटसे देशी पाषाण निर्मित बहत-सी मूर्तियाँ लाकर प्रतिष्ठित की गयी हैं, परन्तु इससे क्षेत्रकी प्राचीनतामें कोई बाधा नहीं पड़ती। इनमें बहुत-सी मूर्तियाँ अंग
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