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३७६ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ
किन्तु कोठियाजीका विचार है कि जब आ० पूज्यपादने राजगृहके पाँच पहाड़ोंमेंसे चारको सिद्धक्षेत्र माना है तो पाण्डुगिरि भी सिद्धक्षेत्र होना चाहिये और इसे सिद्धक्षेत्र सिद्ध करनेके लिए उन्होंने जो तर्क प्रणाली अपनायी है वह अवश्य ही विचारणीय हो जाती है। आगे इसी बातको ध्यानमें रखकर विचार किया जाता है
वे अपने प्रथम लेखमें लिखते हैं कि 'जिस कुण्डलगिरिका नामोल्लेख पूज्यपाद स्वामी कर रहे है वह कौन-सा है और कहाँ है ? क्या उसके दूसरे भी नाम है ?" इतना लिखनेके बाद उन्होंने त्रिलोकप्रज्ञप्ति हरिवंश पुराण और धवला-जयधवलाके प्रमाण देकर पाँच पहाड़ोंका विशेष वर्णन प्रस्तुत किया है । त्रिलोक प्रज्ञप्तिके अनुसार ऋषिगिरि, वैभारगिरि, विपुलगिरि, छिन्नगिरि और पाण्डुगिरि ये पाँच पहाड़ोंके नाम हैं । धवला व जयधवलाके अनुसार पाँच पहाड़ोंके ये ही नाम है जो त्रिलोक प्रज्ञप्तिमें दिये गये हैं। मात्र हरिवंशपुराणके अनुसार छिन्नगिरिके स्थानमें बलाहकगिरि कहा गया है। शेष चार पहाड़ों के नाम वही है जो त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें स्वीकार किये गये है। यहाँ इतना विशेष जानना कि त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें पाण्डुगिरिका कोई आकार नहीं दिया गया है, किन्तु शेष उल्लेखोंमें उसे गोल लिखा है।
एक बात यहाँ ध्यान देने योग्य है कि इन सभी ग्रन्थोंमें जो ये पाँच पहाड़ोंके नाम आये है वे उनका परिचय करानेके अभिप्रायसे ही आये हैं । वे सिद्ध क्षेत्र है, इस अभिप्रायसे उनका उल्लेख उन ग्रन्थोंमें नहीं किया गया है। इसलिए उन ग्रन्थोंका आधार देकर पाण्डुगिरिको सिद्धक्षेत्र ठहराना उपयुक्त प्रतीत नहीं होता।
और त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें जहाँ कुण्डलगिरिको श्रीधरस्वामीका निर्वाण क्षेत्र कहा गया है वह प्रकरण ही दूसरा है । वहाँ यह बतलाया गया है कि भगवान् महावीर स्वामीके मोक्ष जानेके बाद कितने केवली मोक्ष गये हैं। यहाँ इस भारतभूमिमें कितने सिद्धक्षेत्र हैं और वे कहाँ-कहाँ हैं यह नहीं बतलाया गया है । मात्र प्रसङ्गवश कुण्डलगिरि नामका उल्लेख आया है । इसलिए इसपरसे कुण्डलगिरिको पाण्डुगिरि सिद्ध करके उसे सिद्धक्षेत्र ठहराना उचित प्रतीत नहीं होता । यह वस्तुस्थिति है। . इसे दृष्टिओझल करके कोठियाजी प्रथम लेखमें लिखते हैं कि–'यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि बलाहकको छिन्न भी कहा जाता है। अतः एक पर्वतके ये दो नाम है और उल्लेख ग्रन्थकारोंने छिन्न अथवा बलाहक दोनों नामोंसे किया है। जिन्होंने बलाहक नाम दिया है। उन्होंने छिन्न नाम नहीं दिया और जिन्होंने छिन्न नाम दिया है उन्होंने बलाहक नाम नहीं दिया और अवस्थान सभीने एक-सा बतलाया तथा पंच पहाड़ोंके साथ उसकी गिनती की है । अतः बलाहक और छिन्न दोनों पर्यायवाची नाम हैं इसी तरह ऋष्यद्रिक और ऋषिगिरि ये भी पर्याय नाम हैं ।' आगे वे पुनः लिखते हैं
अब इधर ध्यान दें कि जिन वीरसेन और जिनसेन स्वामीने पाण्डुकगिरिका नामोल्लेख किया है उन्होंने फिर कुण्डल गरिका उल्लेख नहीं किया इसी प्रकार पूज्यपादने जहाँ सभी निर्वाणक्षेत्रोंको गिनाते हए कुण्डलगिरिका नाम दिया है फिर उन्होंने पाण्डुकगिरिका उल्लेख नहीं किया । हाँ, यतिवृषभने अवश्य पाण्डुकगिरि और कुण्डलगिरि दोनों नामोंका उल्लेख किया है। लेकिन दो विभिन्न स्थानोंमें किया है । पाण्डुगिरिका तो पाँच पहाड़ोंके साथ प्रथम अधिकारमें और कुण्डलगिरिका चौथे अधिकारमें किया है। अतएव पाण्डुगिरि भिन्न कुण्डलगिरि अभीष्ट हो ऐसा नहीं कहा जा सकता । किन्तु ऐसा जान पड़ता है कि यतिवृषभने पूज्यपादकी निर्वाणभक्ति देखी होगी और उसमें पूज्यपादके द्वारा पाण्डुगिरिके लिए नामांतर रूपमें प्रयुक्त कुण्डलगिरिको पाकर इन्होंने कुण्डलगिरिका भी नामोल्लेख किया है। प्रतीत होता है कि पूज्यपादके समयमें पाण्डुगिरिको कुण्डलगिरि भी कहा जाता जाता था । अतएव उन्होंने पाण्डुगिरिके स्थानमें कुण्डलगिरि नाम दिया है।'
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