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चतुर्थ खण्ड : ३६९ नरसीह हरिसिंह वोरसिंह रामसिंह एतैः कर्म-कर्मक्षयार्थं चतुर्विंशतिकाप्रतिष्ठा कारिता पंडितभास शुभं भवतु।
इसमें मूर्तिप्रतिष्ठाकारको काष्ठासंघी कहा गया है। परन्तु मूलमें यह शाखा मूखसंघ कुन्दकुन्दान्वयी ही रही है । इस शाखाके प्रारम्भमें पद्मावती विशेषण लगा है, इससे पाठक यह न समझें कि ये पद्मावती देवीके उपासक रहे हैं । वस्तुतः इस शाखाका मूल निकाय पद्मावती नगरसे हुआ है इसलिए इस शाखाके नाममें पद्मावती विशेषण लगा हुआ है।
ललितपुरके बड़े मन्दिरके शास्त्रागारमें कविताबद्ध चारुदत्त चरितकी हस्तलिखित एक प्रति पाई जाती है । उसकी रचना कवि भारामल गोलालारे और कवि विश्वनाथ पद्मावती पुरवार इन दोनोंने मिलकर की थी। अपनी प्रशस्तिमें कवि भारामल लिखते है
नगर जहानाबाद रहाई । पद्मावती पुरवार कहाई ।
विश्वनाथ संगति शुभ पाय । तब यह कीनौ चरित बनाई ।। यह इस शाखाका संक्षिप्त उपलब्ध पुराना इतिहास है।
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