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२८४ सिद्धान्ताचार्य पं० फुलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ
२. व्यक्ति के जीवन में वीतरागता अर्जित करना मुख्य है अहिंसा आदि उसके बाह्य साधन हैं। मात्र इसीलिए जैनधर्म में अहिंसा आदिको मुख्यता दी गई है। यज्ञादि विहीन हिंसाका निषेध करना इसका मुख्य प्रयोजन नहीं है । जीवनमें अहिंसाके स्वीकार करनेपर उसका निषेध स्वयं हो जाता है ।
ये कतिपय तथ्य हैं जिनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि सुधारवादकी दृष्टिसे जैनधर्मकी संरचना नहीं हुई हैं । किन्तु भारतीय जनजीवनपर जैन संस्कृतिकी अमिट छाप अवश्य है यह माना जा सकता है और यह स्वाभाविक भी है । जो पड़ोसी होते हैं उनमें आदान प्रदान न हो यह नहीं हो सकता ।
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