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केवली जिन कवलाहार नहीं लेते
नियमसारकी गाथा ६ और ७ में बतलाया है कि "जो क्षुधा, तृषा, भय, रोष, राग, मोह, चिन्ता, जरा, रोग, मृत्यु, स्वेद, खेद, मद, रति, विस्मय, निद्रा, जन्म और उद्वेग इन सब दोषोंसे रहित है तथा केवलज्ञान आदि परम वैभवसे यक्त है वह परमात्मा है।"
आचार्य समन्तभद्रने भी रत्नकरण्डश्रावकाचारमें उच्छिन्नदोषके विश्लेषण द्वारा परमात्माका लक्षण करते हुए इसी बातको दुहराया है।
(१) कुछ विद्वानोंका कहना है कि ९ वीं शताब्दीके पूर्व अन्य ग्रन्थोंमें रत्नकरण्डश्रावकाचारके उल्लेख नहीं पाये जाते । इसलिये यह ग्रन्थ समन्तभद्र स्वामीका न होकर किसी अन्य समन्तभद्रका है ।
(२) एक यह भी दलील दी जाती है कि जब समन्तभद्र स्वामीने 'आप्तेनोच्छिन्न' इत्यादि श्लोक द्वारा आप्तका स्वरूप कह दिया और वहाँ यह भी बतला दिया कि इन बातोंको छोड़ कर अन्य प्रकारसे आप्तपना नहीं प्राप्त होता तो फिर इस दूसरे लक्षणकी क्या आवश्यकता थी, इससे तो 'वदतो व्याघात' दोष आता है।
(३) एक यह भी दलील दी जाती है कि समन्तभद्र स्वामीने अन्यत्र आप्तके विषयमें पर्याप्त विचार किया है वहाँ उसे इन क्षुधादि दोषोंसे रहित क्यों नहीं बतलाया ? इससे भी ज्ञात होता है कि आप्त क्षुधादि दोषोंसे रहित होता है यह मान्यता साम्प्रदायिक है और पीछे से गढ़ी गई है।
ये तीन दलीलें हैं जिनपर प्रसंगवश संक्षेपमें विचार कर लेना आवश्यक है। प्रथम दलीलका उत्तर
(१) सन्मतिके कर्ता सिद्धसेनके द्वात्रिंशतकामें रन्नकरण्डका "आप्तोपज्ञ--" यह श्लोक पाया जाता है, इससे ज्ञात होता है कि सिद्धसेनके सामने रत्नकरण्ड था। ये आचार्य सातवीं शताब्दीके विद्वान् है ।
(२) सर्वार्थसिद्धिके कर्त्ता पूज्यपादके सामने समन्तभद्र स्वामीके जो ग्रन्थ रहे उनमें रत्नकरण्डश्रावकाचार भी है। यहाँ दो चार ऐसे प्रमाण दिये जाते हैं जिससे इस विषय की पुष्टि हो
(३) पूज्यपादने जो नयका सामान्य लक्षण किया है उस लक्षणको करते समय उनके सामने आप्तमीमांसा रही है।
(४) तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ९ सूत्र १ की सर्वार्थसिद्धि टीकामें जो 'तीर्थाभिषेकदीक्षाशीर्षोपहारदेवताराधनादयः, यह पंक्ति लिखी गई है सो यह पंक्ति लिखते समय स्वामी समन्तभद्रवत युक्तयनुशासनका यह श्लोक सामने अवश्य रहा है
'शीर्षोपहारादिभिरात्मदुःखैर्देवान् किलाराध्य सुखाभिगृद्धाः।' १. देखो कुन्दकुन्द कृत नियमसार । २. देखो रत्नकरण्डश्रावकाचार ६ वाँ श्लोक । ३. देखो सर्वार्थसिद्धि १, ३३ । ४. देखो १०६ श्लोक ।
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