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जो जैनधर्म जाति प्रथाका अत्यन्त विरोधी कहने के लिये इस समय जैन समाजमें ८४ जातियाँ हजार वर्षसे पहले ही अस्तित्वमें आ गयी थीं ।
चतु खण्ड : ३४१
रहा है, वह भी इस दोषसे अपनेको नहीं बचा सका । प्रसिद्ध हैं । मेरी रायमें उनमें कुछ ऐसी भी हैं जो दो
पौरपाट (परवार) जाति
( १ ) इसी प्रसंगसे मैं स्व० श्री पं० झम्मनलाल जी जैन तर्कतीर्थ द्वारालिखित 'श्री लंमेचू दिगम्बर जैन समाजका इतिहास' देख रहा था। उन्होंने उसके पृ० ३८ पर लिखा है - " प्रमार (परमार) वंशमें राजा विक्रम हुए, उनका संवत् चालू है । उनके नाती (पोता) गुप्तिगुप्त मुनि थे जिन्होंने सहस्र परवार थापे । " श्री गुप्तिगुप्त मुनिके विषयमें विशेष उल्लेख करते हुए उक्त पंडितजीने उसी ग्रन्थके पृ० ३३ पर यह भी लिखा है कि - " गुप्तिगुप्त मुनि भी परमार जाति क्षत्रियवंश जो चन्द्रगुप्त राजाका वंश होता है - यह भी यदुवंशमें ही है । उसी वंशमें विक्रम सम्वत् २६ में हुए हैं ।"
श्री जैन समाज सीकर द्वारा वीर नि० सं० २५०१ में प्रकाशित चारित्रसारके अन्तमें नागौर - शास्त्रभण्डारसे प्राप्त एक पट्टावलि छपी है । उसमें इन आचार्योंके विषयमें लिखा है
(क) मिति फाल्गुन शुक्ला १४ वि० सं० २६ में जाति राजपूत पंवारोत्पन्न श्रीगुप्तिगुप्त हुए । उनका गृहस्थावस्थाकाल २२ वर्ष रहा, दीक्षाकाल ३४ वर्ष और पट्टस्थकाल ९ वर्ष छह मास २५ दिन एवं विरहकाल दिन ५ रहा । इस प्रकारसे इनकी सम्पूर्ण आयु ६५ वर्ष सात माह को थी । ( पट्टावलिके अनुसार इनका क्रमांक २ है 1 )
(ख) मिति आषाढ़ शुक्ला १४ वि० सं० ४० में चौसखा पोरवाड़ जात्युत्पन्न श्री जिनचन्द्र हुए । इनका गृहस्थावस्थाका काल २४ वर्ष, ९ माह रहा । दीक्षाकाल ३२ वर्ष ३ माह, पट्टस्थ काल ८ वर्ष ९. माह, ६ दिन और विरहदिन ३ रहा । इस प्रकारसे इनकी सम्पूर्ण आयु ६५ वर्ष, ९ माह और ९ दिन की थी । इनका पट्टस्थ क्रम ४ है ।
(ग) मिति आश्विन शुक्ला १० वि० सं० ७६५ में पोरवाल द्विसखा जात्युत्पन्न श्री अनन्तवीर्य मुनि हुए । इनका गृहस्थावस्थाकाल ११ वर्ष, दीक्षाकाल १३ वर्ष, पट्टस्थकाल १९ वर्ष, ९ माह, २५ दिन और अन्तरालका दिन १० रहा । इनकी सम्पूर्ण आयु ४३ वर्ष, १० माह, ५ दिन की थी। इनका पट्टस्थ होनेका क्रम ३३ है ।
(घ) मिति आषाढ़ शुक्ला १४ वि० सं० १२५६ में अठसखा पोरवाल जात्युत्पन्न श्री अकलंकचन्द्र मुनि हुए । इनका गृहस्थावस्थाकाल १४ वर्ष, दीक्षाकाल ३३ वर्ष, पट्टस्थकाल ५ वर्ष, ३ माह, २४ दिन और अन्तराल काल ७ दिनका रहा। इनकी सम्पूर्ण आयु ४८ वर्ष, ४ माह १ दिन की थी। इनका पट्टस्थ रहनेका क्रम ७३ है ।
(ङ) मिति अश्विन ३ वि० सं० १२६४ में अठसखा पोरवाल जात्युत्पन्न श्री अभयकीर्ति मुनि हुए । इनका गृहस्थावस्था काल ११ वर्ष २ माह. दीक्षा काल ३० वर्ष ५ माह, पट्टस्थकाल ४ माह, १० दिन और अन्तराल काल ७ दिनका रहा। इनकी सम्पूर्ण आयु ४१ वर्ष ११ माह, १७ दिन की थी । क्रमांक ७८ है । इसी प्रकार 'प्राग्वाट - इतिहास के पृ० १२ पर श्री दौलत सिंहजी लोढ़ा लिखते हैं- "श्री मालपुर इन दिनों में बहुत ही बड़ा और अत्यन्त समृद्ध नगर था । यह अवन्ती और राजगृहीकी स्पर्धा करता था । आज दिल्ली और प्रभासपत्तन, सिन्धुनदी तथा सोननदी तक फैला हुआ जितना भूभाग है, उन दिनोंमें रहे हुए १. पट्टावली सूरीपुर वटेश्वर क्षेत्र ।
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