________________
चतुर्थ खण्ड : १८१
७. सातवाँ भंग सामान्य-विशेष रूप व्यंजनपर्यायों और उनमें गभित अर्थ-पर्यायोंके समुच्चय रूप एक धर्मकी मख्यतासे कहा गया है । यह भी पर्याय वचन है। इसलिए इसमें प्रयुक्त 'स्यात्' पद द्वारा अन्य धर्मोका अभेदोपचार करनेसे यह भंग भी सकलादेशी हो जाता है। अथवा यह स्यात् पद सामान्य, विशेष और अवक्तव्य इन तीनों धर्मोंकी अक्रमवृत्तिको सूचित करनेके लिए दिया गया है।
यह सप्तभंगीकी संक्षिप्त मीमांसा है। इसी प्रकार अन्य सप्रतिपक्ष दो धर्मोकी मुख्यतासे अन्य सप्तभंगियोंकी सिद्धिकी जा सकती है। इसमें प्रत्येक भंग द्वारा परी वस्तु कही गई है। इसलिए यह प्रमाणसप्तभंगी है । नय-सप्तभंगीमें 'स्यात्' पद अन्य धर्मोंको गौण करनेके लिए प्रयुक्त होता है। नय-सप्तभंगीमें 'स्यात्' पदका प्रयोग न करनेकी भी परम्परा है।
WImms
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org