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९८ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ
पर आदरणीय पं० फूलचन्द्रजी कटनी पधारे । पूज्य पं० जगन्मोहनलाल जी सिद्धान्तशास्त्री भी इनके सहयोगी पक्षकार थे । समाधानोंको अन्तिम रूप देने में इनका सहयोग अपेक्षित था। भाई श्री नेमीचन्द्रजी पाटनी भी समाधान-चर्चामें भाग लेने हेतु कटनी पधारे थे ।
प्रथम पक्षके आलेखित प्रश्नोंके उत्तरोंके वाचनमें तीन सप्ताहकी कालावधि लगी। इस पूरे कालमें मैं आदरणीय पण्डितजीके दार्शनिक सैद्धान्तिक असीम ज्ञानकी गहराईका सूक्ष्म एवं गहन अवलोकन करता रहा । वस्तुतत्वके प्रति उनकी दृष्टि बड़ी पैनी थी। पूर्वाचार्योंके कथन एवं शास्त्रोक्त प्रमाणोंकी पुष्टि करनेकी उनकी पकड़ बहुत गहरी थी। अपरपक्षकी शंकाओंका खण्डन और निराकरण अकाट्य था। उत्तेजनामय विवादके समय भी उनका धैर्य, प्रखरता, सरलता और सहृदयता अवलोकनीय थी । श्रोता तो क्या, विद्वान् भी उनके तर्कों और तथ्योंके समक्ष नतमस्तक हो उठते थे। इससे उनमें प्रकाण्ड पांडित्यकी अनूठी झलकके दर्शन होते थे । इन दिनोंमें भी इन कार्यक्रमोंमें पूर्ण तन्मयतासे लगातार भाग लेता रहा । तब मुझे अनुभव हुआ कि पंडितजी देश और समाजके लिए कितने मूल्यवान और उपयोगी हैं। निःसन्देह आदरणीय पं० फूलचन्दजी जैमसमाजकी अमूल्यतम निधि हैं ।
रचनात्मक कार्यों में भी पण्डितजी सदैव गतिशील रहे हैं। साहित्य-सृजनको प्रेरणा एवं गति देनेके उद्देश्य तथा पवित्र भावनासे ही इन्होंने वाराणसी 'नरिया' में 'वर्णी शोध संस्थान' की स्थापना की है । एक बृहत् लायब्ररीमें दुर्लभ ग्रन्थोंका संग्रह किया है । शोध छात्रोंके प्रोत्साहन हेतु छात्रवृत्ति एवं निःशुल्क शिक्षक तथा निर्देशनकी भी समुचित व्यवस्था की है।
___ समाज द्वारा विद्वानोंको समादृत किया ही जाना चाहिए। इतना ही नहीं, बल्कि वृद्धावस्थामें तथा अभावोंके समय इन्हें समाज द्वारा भरपूर आर्थिक सहायता भी दी जानी चाहिए। विद्वान् ही तो हमारी समाजके सम्मान है। सच कहें तो विद्वानोंका सम्मान तो एक बहाना मात्र है, इसके माध्यमसे हम और हमारा समाज ही सम्मानित होता है।
___ मेरी मंगलकामना है कि आदरणीय पंडितजी शतायु हों और दीर्घकाल तक हमारे बीच रहकर स्वस्थ तथा निराकुल रह सकें। सदैव जैनवाङ्गमयकी सेवा करते रहनेका उनका ध्येय और व्रत पूरा हो। हमारा समस्त जैनजगत उनके कार्योंके प्रति सदैव ही ऋणी रहेगा।
मेरे वे श्रद्धेय हैं। उनके प्रति मेरी हार्दिक विनम्रांजलि समर्पित है।
अचित्यनिष्ठा और सतत् लगनकी विभूति • श्रीमंत सेठ राजेन्द्र कुमार जैन, विदिशा
जैनदर्शन के सिद्धान्त अध्यात्मकी उन ऊँची शिखरोंके कलश है जो चिरंतन और शास्वत आलोकसे प्रकाशित हैं। इनको हृदयंगम करनेसे ही अपूर्व सुख और शांतिका मार्ग प्रशस्त होता है, सिद्धान्तोंकी समीक्षा इनमें दृढ़ निष्ठा और सतत् लगनका ही प्रतिफल है । सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्रजी उन्हीं ऊँचाईयों पर रहकर सदैव इन्हें भांजते संजोते रहे हैं । बुन्देलखण्डके पांडित्यका यह पुंज सहजता, सरलता और दृढ़तम लगमका व्यक्तित्व है और जैनदर्शनके द्वादशांगका समचा सार उनके कंठमें विराजमान लगता है।
जीवनकी सफलता और इस जगतके प्रति होनेवाला कर्तव्य बोध इस विभूतिने अनुकरणीय बना दिया है । विदिशासे पंडितजीका निकटतम सम्पर्क रहा । षट्खंडागमके प्रकाशन कालके प्रारम्भ सन् १९३४ से हमारे
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