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७६ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ ३. गोपाचलके अञ्चलमें
मरारमें कार्तिक माहके आष्टाह्निक पर्वमें पं० फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री आदि अनेक विद्वान पधारे थे । सभीके प्रवचन हुए । पं० जीके विषयमें वर्णीजी लिखते हैं
"पं० फूलचन्द्र जीके व्याख्यान बहुत ही रोचक हुए ।" (भाग १ पृ० ५९१) ४. उदासोनाश्रम और संस्कृत-विद्यालयका उपक्रम
चैत्र कृष्ण ३ सं० २००६ को उदासीनाश्रम की स्थापनाके समय पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री आये । आपके द्वारा धर्मकी जीवन में आवश्यकता एवं दान पर प्रवचन हुए, जिससे समाजके परिणाम ऋजु हुए, कुछ भाई ब्रह्मचर्य व्रत लेकर आश्रममें रहनेको आये । पं० जी सा० के बनारस लौट जानेके बाद पू० वर्णी जीने प्रवचनमें कहा
'पं० फूलचन्द्र जी बनारससे आये थे । वे आज बनारस वापस चले गये। आप स्वच्छ बात करते है, किन्तु समयकी गतिविधि देखकर व्यवहार करें, तब उनका प्रयास सफल हो सकता है।"
(भा० २ पृष्ठ १७६) ५. क्षेत्रपालमें चातुर्मास
___सं० २००८ का चातुर्मास ललितपुर नगरस्थ क्षेत्र क्षेत्रपालमें हुआ। वर्णीजीके इस चातुर्माससे ललितपुर दि० जैन समाज धर्मसे आशातीत लाभान्वित हुआ। समाजके आग्रहवश पं० फूलचन्द्र जी पधारे । आपके निष्पह मर्मस्पर्शी अविकल प्रवचनोंसे समाजने अपूर्व लाभ लिया। आपकी निष्पहता, निर्भयता विचारकता एवं कर्मठ व्यक्तित्त्वपर वर्णीजीने अपने प्रवचनमें कहा
"जनताके आग्रहवश बनारससे पं० फूलचन्द्र जी शास्त्री भी आ गये । आप बहुत ही स्वच्छ तथा विचारक विद्वान् हैं। किसी कामको उठाते हैं, तो उसके सम्पन्न करने करानेमें अपने आपको
तन्मय कर देते है । किसी प्रकारका दुर्भाव इनमें देखने में नहीं आया ।" (भा० २ पृ० २८३)
इन शब्दोंसे स्पष्ट झलकता है कि आप उत्तम निष्पह समाजसेवी हैं। आपने जिस कार्यको सम्हाला, उसे अच्छे रूपमें सम्पन्न किया। ६. विविध विद्वानोंका समागम
श्रावण शुक्ल ४ स० २००८ को पं० श्री फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्रीका प्रवचन हुआ। प्रवचनमें स्वतंत्रता एवं स्वावलम्बन तथा परतंत्रता एवं परावलम्बनपर विशद व्याख्या करते हुए स्त्री, पुत्रादिकका मोह छोड़नेके लिए सुमधुर भाषामें प्रेरणात्मक चित्रण किया। व्याख्यानसे प्रेरित हो वर्णीजीने उस व्याख्यानका सार दूसरे दिन संक्षिप्त रूपसे इस प्रकार कहा
"श्रावण शुक्ल ४ सं० २००८ को पं० फूलचन्द्रजीका प्रवचन बहुत मनोहर हुआ । आपने कहा कि आत्माको संसार में रखने वाली यदि कोई वस्तु है तो पराधीनता है और संसार से पार करने वाली कोई वस्तु है तो स्वाधीनता है। हम स्वतन्त्र चैतन्य पुञ्ज आत्म द्रव्य है। हमारा आत्म द्रव्य अपने आपमें परिपूर्ण है । उसे परकी सहायताकी अपेक्षा नहीं है। फिर भी, यह जीव अपनी शक्तिको न समझ पद-पद पर पर-द्रव्यके सहायताकी अपेक्षा करता है और सोचता है कि इसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता । यही इसकी पराधीनता है। जिस समय परकी सहायताकी अपेक्षा छूट जावेगी उस दिन मुक्ति होनेमें देर न लगेगी । अविवेकी मनुष्य स्त्री-पुत्रादिकको
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