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{800 संरम्भादित्रिकं योगैः कषायैाहतं क्रमात् । शतमष्टाधिकं ज्ञेयं हिंसाभेदैस्तु पिण्डितम् ।।
___(ज्ञा. 8/9/481) संरंभ, समारंभ और आरंभ-इस त्रिक को मन-वचन-काय की तीन-तीन प्रवृत्तियों से तथा क्रोध, मान, माया, लोभ, इन चार कषायों और कृत, कारित, अनुमोदना (अनुमति
वा सम्मति) से क्रमशः गुणन करने पर हिंसा के 108 भेद होते हैं, तथा अनन्तानुबंधी, 卐 अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन कषायों के उत्तरभेदों से गुणन करने से 432 भेद भी 卐 हिंसा के होते हैं।
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[हिंसा में उद्यमरूप परिणामों का होना या जीवों के घात का मन में संकल्प करना तो 'संरंभ' है, हिंसा के साधनों में अभ्यास करना (सामग्री मिलाना) 'समारंभ' है और हिंसा में प्रवर्तन करना आरंभ' है। इन तीन को मनवचन-काय के योग से गुना करने पर नव भेद होते हैं और इन नौ भेदों को कृत-कारित-अनुमोदन से गुणा करने पर 27; फिर इनको क्रोध, मान, माया और लोभ इन चारों कषायों के साथ गुणन से हिंसा के 108 भेद होते हैं। कृत-आप स्वाधीन होकर करे, कारित- अन्य से करवाये, और अन्य कोई हिंसा करता हो तो उसको भला जाने, उसे अनुमोदन या अनुमत कहते हैं। जैसे- 1 क्रोधकृतकायरिंभ, 2 मानकृतकायसंरंभ, 3 मायाकृतकायसंरंभ, 4 लोभकृतकायसंरंभ, 5 क्रोधकारितकायसंरंभ, 6 मानकारित कायसंरंभ, 7 मायाकारित कायसंरंभ, 8 लोभकारित कायसंरंभ, 9 क्रोधानुमत
कायसंरंभ, 10 मानानुमत कायसंरंभ, 11 मायानुमत कायसंरंभ, 12 लोभानुमत कायसंरंभ, इस प्रकार काय के संरंभ के 712 भेद, इसी प्रकार वचनसंरंभ के 12 भेद और मानसंरंभ के 12 भेद, कुल मिलकर 36 भेद संरंभ के हुए और इसी
प्रकार 36 समारंभ के और 36 आरंभ के, इस प्रकार सब मिला कर 108 भेद हिंसा के होते हैं; और क्रोध, मान, माया तथा लोभ- इन चार कषायों के अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन- इन चार भेदों के साथ गुणन करने से 432 भेद भी हिंसा के होते हैं। जप करने की माला में 3 दाने ऊपर और 108 दाने माला में होते हैं वह इसी संरंभ, समारंभ, आरंभ के तीन दाने मूल में रख कर उसके भेदरूप (शाखारूप) 108 दाने डाले जाते हैं, अर्थात् सामयिक (संध्यावंदन जाप्यादि) करते समय क्रम से 108 आरंभों (हिंसारूप पापकर्मों) का परमेष्ठी के मानस्मरणपूर्वक त्याग करना चाहिए, तत्पश्चात् धर्मध्यान में लगना चाहिए।
181) कृतकारितानुमननैर्वाक्कायमनोभिरिष्यते नवधा। औत्सर्गिकी निवृत्तिर्विचित्ररूपापवादिकी त्वेषा॥
(पुरु. 4/39/75) कृत, कारित और अनुमोदन रूप तीन भेद, तथा इन तीनों के भी मन, वचन और काया- इस तरह तीन-तीन भेद, कुल नौ प्रकार का सामान्य/औत्सर्गिक हिंसा-त्याग माना गया है, और अपवाद रूप हिंसा-त्याग तो अनेक प्रकार का होता है।
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[जैन संस्कृति खण्ड/34