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FREETERNETHREFERENEFFFFFFFFFF a समस्त संसार में शास्त्रों के विरुद्ध और अत्यन्त पाप रूप पशुओं की हिंसा से भरे हिंसामय : यज्ञ की प्रवृत्ति चलाई, इसी कारण से वह राजा वसु व दुष्ट पर्वत के साथ घोर नरक में गया,
सो ठीक ही है, क्योंकि जो पाप उत्पन्न करने वाले मिथ्यामार्ग चलाते हैं, उन पापियों के लिए 卐 नरक जाना कोई बड़ी बात नहीं है।
{189) व्यामोहात्सुलसाप्रियस्स सुलसः सार्द्ध स्वयं मन्त्रिणाम्, शत्रुच्छद्मविवेकशून्यहृदयः संपाद्य हिंसाक्रियाम्। नष्टो गन्तुमधः क्षितिं दुरितिनामक्रूरनाशं मुधा, दुष्कर्माभिरतस्य किं हि न भवेदन्यस्य चेदृग्विधम्॥
___(उ. पु. 67/472) मोहनीय कर्म के उदय से जिसका हृदय शत्रुओं का छल समझने वाले विवेक से है शून्य था, ऐसा राजा सगर रानी सुलसा और विश्वभू मंत्री के साथ स्वयं हिंसामय क्रियाएं कर अधोगति में जाने के लिए नष्ट हुआ। जब राजा की यह दशा हुई तब जो अन्य साधारण मनुष्य अपने क्रूर परिणामों को नष्ट न कर व्यर्थ ही दुष्कर्म में तल्लीन रहते हैं, उनकी क्या ऐसी 卐 दशा नहीं होगी? अवश्य होगी।
[महाकाल असुर, राजा वसु, दुष्ट पर्वत, राजा सगर आदि से सम्बद्ध पौराणिक कथा के विस्तृत जानकारी ॐ हेतु देखें इस ग्रन्थ के अन्त में परिशिष्ट-2]
Oहिंसा-रागर्थक शास्त्रों के उपदेशक निन्दनीय
(190) पार्थिवैर्दण्डनीयाश्च लुण्टाकाः पापपण्डिताः। तेऽमी धर्मजुषां बाह्या ये निघ्नन्त्यघृणाः पशून्॥ पशुहत्यासमारम्भात् क्रव्यादेभ्योऽपि निष्कृपाः। यधुच्छ्रितिमुशन्त्येते हन्तैवं धार्मिका हताः॥
(आ. पु. 39/136-37) ' ___ जो निर्दय होकर पशुओं का घात करते हैं वे पापरूप कार्यों में पण्डित हैं, लुटेरे हैं, '
और धर्मात्मा लोगों से बाह्य हैं, ऐसे पुरुष राजाओं के द्वारा दण्डनीय होते हैं। पशुओं की EE हिसा करने के उद्योग से जो राक्षसों से भी अधिक निर्दय हैं यदि ऐसे पुरुष ही उत्कृष्टता को ॐ प्राप्त होते हों तब तो दुःख के साथ कहना पड़ेगा कि बेचारे धर्मात्मा लोग व्यर्थ ही नष्ट हुए।
EFFFFFFFFFFFFFFEE [जैन संस्कृति खण्ड/82