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(सा. ध. 5 / 9 ) 筆
जिन शास्त्रों में काम, हिंसा आदि का कथन है उनके सुनने से चित्त राग-द्वेष के आवेश से कलुषित होता है, अतः उनके सुनने को दुःश्रुति कहते हैं, ७ यह नहीं करना चाहिए। आर्त और रौद्ररूप खोटे ध्यान भी नहीं करने चाहिएं। 馬
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[विशेषार्थ:- कुछ शास्त्र ऐसे होते हैं जिनमें मुख्य रूपसे काम-भोग सम्बन्धी या हिंसा, चोरी आदि की ही
काकथन रहता है। इनके सुनने व पढने से मन खराब होता है, पढ़ कर कामविकार उत्पन्न होता है, अतः ऐसी पुस्तकों को या शास्त्रों को नहीं पढ़ना चाहिए। इसी तरह, अपध्यान भी नहीं करना चाहिए। ]
(754)
आरम्भसङ्ग साहस- मिथ्यात्वद्वेषरागमदमदनैः । चेतः कलुषयतां श्रुतिरवधीनां दुःश्रुतिर्भवति ॥
चित्तकालुष्यकृत्कामहिंसाद्यर्थ श्रुतश्रुतिम् ।
न दुःश्रुतिमपध्यानं नार्तरौद्रात्म चान्वियात् ॥
( रत्नक. श्री. 79 )
आरम्भ, परिग्रह, साहस, मिथ्यात्व, द्वेष, राग, मद और विषयभोग से चित्त को मलिन करने वाले शास्त्रों का सुनना 'दुःश्रुति' नामक अनर्थदण्ड कहलाता है ।
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कुतूहलाद् गीत-नृत्य-नाटकादिनिरीक्षणम् । कामशास्त्रप्रसक्तिश्च द्यूतमद्यादिसेवनम् ॥ जलक्रीड़ाऽन्दोलनादि विनोदं जन्तुयोधनम् । रिपोः सुतादिना वैरं, भक्तस्त्रीदेशराट्कथा ॥ रोगमार्गश्रमौ मुक्त्वा स्वापश्च सकलां निशाम् । एवमादि परिहरेत् प्रमादाचरणं सुधीः ॥
(है. योग. 3/78-80) कुतूहल- पूर्वक गीत, नृत्य, नाटक आदि देखना; कामशास्त्र में आसक्त रहना; जुआ, मदिरा आदि का सेवन करना, जलक्रीड़ा करना, झूले आदि का विनोद करना, पशु-पक्षियों
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को आपस में लड़ाना, शत्रु के पुत्र आदि के साथ भी वैर-विरोध रखना, स्त्रियों की, खानेपीने की, देश एवं राजा की व्यर्थ की ऊलजलूल विकथा करना, रोग या प्रवास की थकान ♛ को छोड़ कर अन्य समय में भी सारी रात भर सोते रहना; इस प्रकार के प्रमादाचरण का 卐 बुद्धिमान् पुरुष त्याग करे ।
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