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NEEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFER ॐ (हिंसा-निवृत्ति रूप अनर्थदण्ड व्रत के अतिचार)
(759 संयुक्ताधिकरणत्वमुपभोगातिरिक्तता । मौखर्यमथ कौत्कुच्यं कन्दर्पोऽनर्थदण्डगाः॥
___ (है. योग. 3/114) ___ 1. हिंसा के साधन या अधिकरण संयुक्त रखना, 2. आवश्यकता से अधिक उपभोग के साधन रखना, बिना विचारे बोलना, भांड की तरह चेष्टा करना, कामोत्तेजक शब्दों का 卐 प्रयोग करना - ये पांच अतिचार अनर्थदण्डविरति के हैं।
FO अहिंसा-पोषक दिग्व्रत
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चराचराणां जीवानां विमर्दननिवर्तनात् । तप्तायोगोलकल्पस्य सव्रतं गृहिणोऽप्यदः॥ जगदाक्रममाणस्य प्रसरल्लोभवारिधेः। स्खलनं विदधे तेन, येन दिग्विरतिः कृता॥
___ (है. योग. 3/2-3) चारों दिशाओं में क्षेत्र को मर्यादित करने से चराचर जीवों के हिंसादि के रूप में म होने वाले विनाश से निवृत्ति होती है। इसलिए गृहस्थ के लिए, जो तपे हुए लोहे के गोले 卐 के समान (सर्वत्र जीव-हिंसा करने का अभ्यस्त) है, यह 'दिग्विरति' व्रत शुभ बताया है
जाता है । जिस मनुष्य ने दिग्विरति (दिशापरिमाण) व्रत अंगीकार कर लिया, उसने मानों
सारे संसार पर आक्रमण करने हेतु विस्तृत होते रहने वाले लोभरूपी महासमुद्र को ही 卐 रोक लिया।
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अहिंसा-विश्वकोश/317)