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ENTERTEREFREFERENEFFERENEFFER 卐 मिथ्या, कठोर, अपनी प्रशंसा और पर की निन्दा करने वाले तथा दूसरों में उपद्रव
कराने वाले वचन से आत्मघाती निवृत्ति, जो इस प्रकार के वचनों की प्रवृत्ति को रोकती है,
वह 'वचन गुप्ति' है। वचन गुप्ति' में वचन शब्द से जिस वचन को सुन कर प्रवृत्ति करता 卐 हुआ आत्मा अशुभ कर्म करता है उस वचन का ग्रहण है। अतः वचन-विशेष को उत्पन्न न
करना वचन का परिहार है और वही 'वचन गुप्ति' है। अथवा समस्त प्रकार के वचनों का परिहार रूप मौन वचन गुप्ति' है। अयोग्य वचन में अप्रवृत्ति वचनगुप्ति है। प्रेक्षापूर्वकारी होने
से वह योग्य वचन बोले या न बोले। किन्तु योग्य वचन बोलना- उनका कर्ता होना म 'भाषासमिति' है। अतः गुप्ति और समितियों में महान् अन्तर है। मौन वचन गुप्ति' है- ऐसा॥
कहने पर गुप्ति और समिति का भेद स्पष्ट हो जाता है। समिति' योग्य वचन में प्रवृत्ति कराती है, और 'गुप्ति' किसी वचन की उत्पादक नहीं है।
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अनृतपरुषकर्कशमिथ्यात्वासंयमनिमित्तवचनानां अवक्तृता वाग्गुप्तिः।........ प्राणिपीडापरिहारादरवतः सम्यगयनं प्रवृत्तिः समितिः।
(भग. आ. विजयो. 114) असत्य, कठोर और कर्कश वचनों को तथा मिथ्यात्व और असंयम में निमित्त होने वाले वचनों को न बोलना 'वचनगुप्ति' है।
प्राणियों को पीड़ा न हो, इस भाव से सम्यक् रूप से प्रवृत्ति करना 'समिति' है।
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0 वाणीकृत हिंसा से बचने का प्रमुख उपायः मौन
____(1010) से भिक्खू वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया आगच्छेज्जा, से 卐णं पाडिपहिया एवं वदेजा- आउसंतो समणा! अवियाइं एत्तो पडिपहे पासह मणुस्स
वा गोणं वा महिसं वा पसुं वा पक्खि वा सरीसवं वा जलचरं वा, से तं मे आइक्खह, सेह । तं णो आइक्खेजा, णो दंसेज्जा, णो तस्स तं परिजाणेज्जा, तुसिणीए उवेहेजा, जाणं वा णो जाणं ति वदेजा। ततो संजयामेव गामाणुगाम दूइजेज्जा। (510)
(आचा. 2/3/3 सू. 510) संयमशील साधु या साध्वी को ग्रामानुग्राम विहार करते हुए रास्ते में सामने से कुछ पथिक निकट आ जाएं और वे यों पूछे आयुष्मन् श्रमण! क्या आपने इस मार्ग में किसी EFFFFFFFFFFARPARATHIHEARTHEATREENEFFERENEF
अहिंसा-विश्वकोश।405)