Book Title: Ahimsa Vishvakosh Part 02
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 594
________________ LELELELELELELELELELELELELELELELEHOLDELCELELELELELELELELCLCLEA उद्धरण का प्रारम्भिक शि उद्धरण पृष्ठ संख्या संख्या उद्धरण का प्रारम्भिक अंश उद्धरण पृष संख्या संख्या 748 0 9 मांसमद्यमधुघूतक्षीरि... 66076 मांसमद्यमधुबूतवेश्या... 659 15 मांसादिषु दया नास्ति... 633 268 मांसास्वादनलुब्धस्य... 632 268 माइणो कट्टु मायाओ... 234 104 मा कडुयं भणह जणे... -413 183 मा कार्षीत् कोऽपि पापानि... 1160 468 मातेव सर्वभूतानाम्... 371 169 माध्यस्थ्यलक्षणं प्राहु... 846 342 मारणसीलो कुणदि हु... 250 111 मारेदि एयमवि जो... 205. 94 मिगवहपरिणामगओ... 87 37 मिच्छादसणरत्ता... 238 ___107 मिथ्यात्ववेदरागाः 451 196 मिथ्यादर्शनमात्मस्थं... 99 मिथ्यादृष्टिभिराम्नातो... 607 260 मीना मृत्यु प्रयाता... मुत्ताण कम्मबंधो... 62 मुसावाओ अ लोगम्मि... 969 मूलफलशाकशाखा... मृते वा जीविते वा... मेधां पिपीलिकां हन्ति... 326 मेहावी णेव सयं छज्जीव.... 1023 410 मेहुणमूलं य सुव्वए... 47 207 मेहुणसण्णासंपगिद्धा... 478 मैत्रीप्रमोदकारुण्य... 1145 462 1147 463 1150 ___465 1156467 मैत्र्यादिवासितं चेतः... . 1153 मौनमेव हितं पुंसां... 1015 नियस्वेत्युच्यमानोऽपि... 207 यंत्रपीडा-निर्लाछन... 716 302 218 707 639 556 554 626 705 794 947 277 यंत्रलांगल-शस्त्राग्नि... यतीनां श्रावकाणां च... यत्किंचित्संसारे... यत्खलु कषाययोगात्... यजन्तुवधसंजात... यत्परदारार्थादिषु... यत्स्यात्प्रमादयोगेन... यथा यथा हृदि स्थैर्य... यथावदतिथौ साधौ... यदपि किल भवति मांसं... यदि प्रशमसीमानं... यदि वाक्कण्टकैर्विद्धो... यदेकबिन्दोः प्रचरन्ति.... यद्यत्स्वस्यान्ष्टिं.. यद्येवं तर्हि दिशा... यद्रागद्वेषमोहेभ्यः... यन्मया वंचितो लोको... यस्मात् सकषायः सन्... यानि तु पुनर्भवेयु... युक्ताचरणस्य सतो... ये च मिथ्यादृशः क्रूरा... येषां जिनोपदेशेन... ये स्त्रीशस्त्राक्षसूत्रादि... योनिरुदुम्बरयुग्म.. यो हि कषायाविष्टः.. रक्षा भवति बहूनाम्... रसजानां च बहूनां... रागद्वेषत्यागात्... रागद्वेषनिवृत्ते... रागद्वेषमोहाविष्टस्य... रागादिवर्द्धनानां... रागादीनामनुत्पत्तौ... रागदोसाभिभूयप्पा... 217 58 390 658 3218 267 572 612 657 208 812 106 625 770 12 813 '752 809 387 FFFFERTISTER [जैन संस्कृति खण्ड/564

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