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मृतिप्रयोगसंपादी ततो निर्गत्य निर्घणः। पर्वतस्य प्रसादेन सुलसासहितः सुखम् ॥ (381) प्राप्तोऽहमिति शंसन्तं विमानेऽस्मिदर्शयत्। तं दृष्ट्वा तत्परोक्षेत्र विश्वभूः सचिव: स्वयम् ॥ (382) विषयाधिपतिर्भूत्वा महामेधे. तोधमः। विमानान्तर्गता देवा पितर नमोऽङ्गणे॥ (383) सर्वेषां दर्शिता व्यक्तं महाकालस्य मायया। महामेधस्त्वया यागो मंत्रिन पुण्यवतां कृतः। (384) इति विश्वभुवं भूपः संभूयास्ताविषुस्तदा। नारदस्तापसाचैतदाकण्यष दुरात्मना ॥ (385) दुर्मार्गों द्विषताऽनेन धिक लोकस्य प्रकाशितः। निवार्योऽयमुपायेन केनचित्पापपण्डितः॥ (386) इति सर्वेऽपि संगत्य . साकेतपुरमागताः। यथाविधि समालोक्य सचिवं पापिनो नराः॥ (387) नितान्तमर्थकामार्थ कुर्वन्ति प्राणिनां वधम्। न केऽपि कापि धर्मार्थ प्राणिनां सन्ति घातकाः॥ (388) वेदविभिरहिंसोक्ता वेदे ब्रह्मनिरूपिते। कल्पवल्लीव मातेव सखीव जगते हिता॥ (389) इति पूर्वर्षिवाक्यस्य त्वया प्रामाण्यमिच्छता।
त्याज्यमेतद्वधप्रायं कर्म कर्मनिबन्धनम्॥ (390) उसी समय भयंकर वज्रपात होने से शत्रु का पतन हो गया और उस कार्य में लगे हुए सब जीवों के साथ 卐 ॐ राजा सगर मर कर रौरव नरक (सातवें नरक) में उत्पन्न हुआ। अत्यन्त दुष्ट महाकाल भी तीव्र क्रोध करता हुआ अपने 卐 ॐ वैररूपी वायु के झंकोरे से उसे दंड देने के लिए नरक गया, परंतु उसके नीचे जाने की अवधि तीसरे नरक तक ही थी।卐 ॐ वहां तब उसने उसे खोजा, परन्तु जब पता नहीं चला तब वह निर्दय वहां से निकला और विश्वभू मंत्री आदि शत्रुओं卐 E को मारने का उपाय करने लगा। उसने माया से दिखाया कि राजा सगर सुलासा के साथ विमान में बैठा हुआ कह रहा ज है कि मैं पर्वत के प्रसाद से ही सुख को प्राप्त हुआ हूं। यह देख, विश्वभू मंत्री जो कि सगर राजा के पीछे स्वयं उसके
देश का स्वामी बन गया था, महामेध यज्ञ करने का उद्यम करने लगा। महाकाल की माया से सब लोगों को साफ-साफ दिखाया गया था कि आकाशांगण में बहुत-से देव तथा पितर लोग अपने-अपने विमानों में बैठे हुए हैं। राजा सगर तथा अन्य लोग एकत्रित होकर विश्वभूमंत्री की स्तुति कर रहे हैं कि मंत्रिन्! तुम बड़े पुण्यशाली हो, तुमने यह महामेध यज्ञ प्रारम्भ कर बहुत अच्छा कार्य किया। इधर यह सब हो रहा था, उधर नारद तथा तपस्वियों ने जब यह समाचार सुना तो वे कहने लगे कि इस दुष्ट शत्रु ने लोगों के लिए यह मिथ्या मार्ग बतलाया है, अतः इसे धिक्कार है। पाप करने में
अत्यन्त चतुर इस पर्वत का किसी उपाय से प्रतिकार करना चाहिए। ऐसा विचार कर सब लोग एकत्रित हो अयोध्या रामनगर में आए। वहां उन्होंने पाप करते हुए विश्वभू मंत्री को देखा और देखा कि बहुत-से पापी मनुष्य अर्थ और काम जनके लिए बहुत से प्राणियों का वध कर रहे हैं। तपस्वियों ने विश्वभू मंत्री से कहा कि पापी मनुष्य अर्थ और काम के ॐ लिए तो प्राणियों का विघात करते हैं, परंतु धर्म के लिए कहीं भी कोई भी मनुष्य प्राणियों का घात नहीं करते। वेद के ॐ जानने वालों ने ब्रह्मनिरूपित वेद में अहिंसा को कल्पलता के समान अथवा सखी के समान जगत् हित करने वाली ॐ बतलाया है। हे मंत्रिन्! यदि तुम पूर्व ऋषियों के इस वाक्य को प्रमाण मानते हो तो तुम्हें हिंसा से भरा हुआ यह कार्यक 卐 जो कि कर्मबंध का कारण है अवश्य ही छोड़ देना चाहिए। E EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER
अहिंसा-विश्वकोश/505)
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