Book Title: Ahimsa Vishvakosh Part 02
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 538
________________ HE R EFERENEURSEEEEEEEEEEEEEEEEEEng पश्वादिलक्षणः सर्गों व्यज्यते क्रियतेऽथवा। क्रियते चेत्खपुष्पादि चासन क्रियते कुतः॥ (410) अथाभिव्यज्यते तस्य वाच्यं प्राक्प्रतिबन्धकम्। प्रदीपज्वलनात्पूर्व घटादेरन्धकारवत् ॥ (411) अस्तु वा नाहतव्यक्तिसष्टिवादो विधीयते । इति श्रुत्वा वचस्तस्य सर्वे ते तं समस्तुवन्॥ (412) वसुना चेद् द्वयोर्वादे विच्छेदः सोऽभिगम्यताम्। इति ताभ्यां समं संसदगच्छत्स्वस्तिकावतीम् ॥ (413) दूसरी बात यह है कि ब्रह्मा जो पशु बनाता है, वह प्रकट करता है अथवा नवीन बनाता है? यदि नवीन बनाता है तो आकाश, फूल आदि असत् पदार्थ क्यों नहीं बना देता? यदि यह कहो कि ब्रह्मा पशु आदि को नवीन नहीं बनाता है, किंतु प्रकट करता है तो फिर यह कहना चाहिए कि प्रकट होने के पहले उनका प्रतिबंधक क्या था? उन्हें प्रकट होने से रोकने वाला कौन था? जिस प्रकार दीपक जलने के पहले अंधकार घटादि को रोकने वाला है, उसी प्रकार प्रकट होने के पहले पशु आदि को रोकने वाला भी कोई होना चाहिए। इस प्रकार आपके सृष्टिवाद में यह व्यक्तिवाद आदर करने के योग्य नहीं है। इस तरह नारद के वचन सुन कर सब लोग उसकी प्रशंसा करने लगे। सब कहने लगे कि यदि राजा वसु के द्वारा तुम दोनों का विवाद विश्रान्त होता है तो उनके पास चला जाए। ऐसा कह सभा के सब लोग नारद और पर्वत के साथ स्वस्तिकावती नगर गए। $听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$$$明明明明明明化 頭明%%%%%%%%%%%%%%頭弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱 तत्सर्व पर्वतेनोक्तं ज्ञात्वा तजननी तदा। सह तेन वसुं दृष्ट्वा पर्वतस्त्वपरिग्रहः॥ (414) तपोवनोन्मुखेनायं गुरुणापि तवार्पितः। नारदेन सहास्येह तवाध्यक्षे भविष्यति ॥ (415) विवादो यदि भङ्गोऽत्र भावी भावियमाननम्। विद्ध्यस्य शरणं नान्यदित्याख्यत्सोऽपि सादरम्॥ (416) विधित्सुर्गुरुशुश्रूषामम्ब मास्मात्र शङ्कथाः। जयमस्य विधास्यामीत्यस्या भयमपाकरोत् ॥ (417) पर्वत के द्वारा कही हुई यह सब बातें जब उसकी माता ने जानी तब वह पर्वत को साथ लेकर राजा वसु के पास गई और राजा वसु के दर्शन कर कहने लगी कि यह निर्धन पर्वत को तपोवन के लिए जाते समय तुम्हारे गुरु ने तुम्हारे लिए सौंपा था। आज तुम्हारी अध्यक्षता में यहां नारद के साथ विवाद होगा। यदि कदाचित् उस वाद में उसकी पराजय हो गई तो फिर यमराज का मुख ही इसका शरण होगा अन्य कुछ नहीं, यह तुम निश्चित समझ लो, इस प्रकार पर्वत की माता ने राजा वसु से कहा। राजा वसु गुरु की सेवा करना चाहता था, अत: बड़े आदर से बोला कि हे मां! इस विषय में तुम कुछ भी शंका न करो। मैं पर्वत की ही विजय कराऊंगा। इस तरह कह कर, उसने पर्वत की मां का भय दूर कर दिया। 1.1.C.CUCUCUEUEUEUEUEUEUELELELELELELELELELELELELLEL909090909 [जैन संस्कृति खण्ड/08

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