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गतयोर्जनकागारं स्यान्न वेष्टं कुमारयोः । इति सोऽपि पुराणेषु निमित्तेषु च लक्षितम्॥ (466) अस्मत्कुमारयोस्तत्र यागे भावी महोदयः । संशयोऽत्र न कर्तव्यस्त्वयाऽन्यच्चेदमुच्यते ॥ (467)
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इस प्रकार अतिशयमति मंत्री के द्वारा कहा हुआ आगम सुन कर प्रथम मंत्री, राजा तथा अन्य सभासद लोगों ने उस द्वितीय मंत्री की बहुत भारी स्तुति की। उस समय राजा दशरथ का महाबल नाम का सेनापति बोला कि यज्ञ में 卐 ॐ पुण्य हो चाहे पाप, हम लोगों को इससे क्या प्रयोजन है? हम लोगों को तो राजाओं के बीच दोनों कुमारों का प्रभाव ज दिखलाना श्रेयस्कर है। सेनापति की यह बात सुन कर राजा दशरथ ने कहा कि अभी इस बात पर विचार करना है।
यह कह कर उन्होंने मंत्री और सेनापति को बिदा किया और तदनन्तर हित का उपदेश देने वाले पुरोहित से यह प्रश्न) पूछा कि राजा जनक के घर जाने पर दोनों कुमारों का इष्ट सिद्ध होगा या नहीं? उत्तर में पुरोहित भी पुराणों और निमित्तशास्त्रों के कहे अनुसार कहने लगा कि हमारे इन दोनों कुमारों का राजा जनक के उस यज्ञ में महान् ऐश्वर्य प्रकट होगा, इसमें आपको थोड़ा भी संशय नहीं करना चाहिए। इसके सिवाय एक बात और कहता हूं।
अथास्मिन् भारते क्षेत्र मनवस्तीर्थनायकाः। चक्रे शास्त्रिविधा रामा भविष्यन्ति महौजसः॥ (468) इत्याख्याताः पुराण मुनीशैः प्राग्मया श्रुताः। तेष्वष्टमाविमौ रामकेशवो नः कुमारको॥ (469) भाविनी रावणं हत्वे त्यवादीद्राविविगिर:। तत्तदुक्तं तदाकर्ण्य परितोषमगान्नृपः॥ (470)
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___वह यह कि इस भरत क्षत्र में मनु-कुलकर, तीर्थकर, तीन प्रकार के चक्रवर्ती (चक्रवर्ती, नारायण और प्रतिनारायण) और महाप्रतापी बलभद्र होते हैं। ऐसा पुराणों के जानने वाले मुनियों ने कहा है तथा मैंने भी पहले सुना है। हमारे ये दोनों कुमार उन महापुरुषों में भावी आठवें बलभद्र और नारायण हैं, रावण को मारेंगे इस प्रकार भविष्य को जानने वाले पुरोहित के वचन सन कर राजा संतोष को प्राप्त हुए।
कृत्वा पापमदः कुधा पशुवधस्योत्सूत्रमाभूतलं, हिंसायज्ञमवर्तयत् कपटधीः क्रूरो महाकालकः। तेनागात्स वसः सपर्वतखलो घोरां धरी नारकी, दुर्मार्गान् दुरितावहान्विदधतां नैतन्महत्पापिनाम्॥ (471)
___ कपट रूप बुद्धि को धारण करने वाले क्रूरपरिणामी महाकाल ने क्रोधवश समस्त संसार में शास्त्रों के विरुद्ध ॐ और अत्यन्त पाप रूप पशुओं की हिंसा से भरे हिंसामय यज्ञ की प्रवृत्ति चलाई, इसी कारण से वह राजा वसु, दुष्ट पर्वत 卐 के साथ घोर नरक में गया, सो ठीक ही है, क्योंकि जो पाप उत्पन्न करने वाले मिथ्यामार्ग चलाते हैं, उन पापियों के 卐 लिए नरक जाना कोई बड़ी बात नहीं है।
[जैन संस्कृति खण्ड/14