Book Title: Ahimsa Vishvakosh Part 02
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 539
________________ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐 馬 RASAN 高卐卐編編編編卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 अन्येद्युर्वसुमाकाशस्फटिकांत्र्युद्धृतासनम् हुए हैं। सिंहाङ्कितं समारुह्य स्थितं समुपगम्यते ॥ ( 418 ) संपृच्छन्ति स्म सर्वेऽपि विश्वभूसचिवादयः । प्रागप्यहिंसादिधर्मरक्षणतत्पराः ॥ (419) त्वत्तः चत्वारोऽत्र महीपाला भूता हिममहासम । वस्वादिगिरिपर्यन्तनामानो हरिवंशजाः ॥ (420) पुरा चैषु व्यतीतेषु अभूत् ततो भवांश्चासीदहिंसा धर्मरक्षक विश्वावसुमहामहीट् । (421) दूसरे दिन राजा वसु आकाश- स्फटिक के पायों से खड़े हुए, सिंहासन पर आरूढ़ होकर राजसभा में विराजमान था। उसी समय वे सब विश्वभू मंत्री आदि राजसभा में पहुंच कर पूछने लगे कि आपसे पहले भी अहिंसा आदि धर्म की रक्षा करने में तत्पर रहने वाले हिमगिरि, महागिरि, समगिरि और वसुगिरि नाम के चार हरिवंशी राजा हो गए हैं। इन सबके अतीत होने पर, महाराज विश्वावसु हुए और उनके बाद अहिंसा धर्म की रक्षा करने वाले आप त्वमेव सत्यवादीति प्रघोषो भुवनत्रये । विषवहितुलादेश्यो वस्तुसंदेहसंनिधौ ॥ (422) त्वमेव प्रत्ययोत्पादी छिन्धि नः संशयं विभो । अहिंसालक्षणं धर्म नारदः प्रत्यपद्यत ॥ (423) पर्वतस्तद्विपर्यासमुपाध्यायोपदेशनम् I यादृक् तादृक् त्वया वाच्यमित्यसौ चार्थितः पुरा ॥ (424) गुरुपल्याऽऽप्तनिर्दिष्टं बुध्यमानोऽपि भूपतिः । महाकालमहामोहेनाहितो दुःषमावधेः ॥ (425) सामीप्याद्रक्षणानन्दरौद्र ध्यानपरायणः I पर्वताभिहितं तत्त्वं दृष्टे काऽनुपपन्नता ॥ (426) स्वर्गमस्यैव यागेन सजानि: सगरो ऽप्यगात् । ज्वलत्प्रदीपमन्येन को दीपेन प्रकाशयेत् ॥ (427) आप ही सत्यवादी हैं, इस प्रकार तीनों लोकों में प्रसिद्ध हैं। किसी भी दशा में संदेह होने पर आप विष, अग्नि की और तुला के समान हैं। हे स्वामिन्! आप ही विश्वास उत्पन्न करने वाले हैं, अतः हम लोगों का संशय दूर कीजिए। नारद 卐 'काने ' अहिंसा लक्षण धर्म' बतलाया है और पर्वत इससे विपरीत कहता है, अर्थात् हिंसा को धर्म बतलाता है। अब उपाध्यायगुरुमहाराज का जैसा उपदेश हो, वैसा कहिये। इस प्रकार सब लोगों ने राजा वसु से कहा। राजा वसु यद्यपि आप्त भगवान् 卐 के द्वारा कहे हुए धर्मतत्त्व को जानता था, तथापि गुरुपत्नी उससे पहले ही प्रार्थना कर चुकी थी, इसके सिवाय वह महाकाल के द्वारा उत्पादित महामोह से युक्त था, दुःषमा नाम पंचम काल की सीमा निकट थी, और वह स्वयं परिग्रहानंद रूप रौद्र का ध्यान में तत्पर था, अतः कहने लगा कि जो तत्त्व पर्वत ने कहा है, वह ठीक है। जो वस्तु प्रत्यक्ष दीख रही है, उसमें बाधा हो ही कैसे सकती है? इस पर्वत के बताए यज्ञ से ही राजा सगर अपनी रानी सहित स्वर्ग गया है। जो दीपक स्वयं जल क रहा है- स्वयं प्रकाशमान है, भला उसे दूसरे दीपक के द्वारा कौन प्रकाशित करेगा ? 馬 事事事 卐卐卐卐卐 事事事 רבר בחבר $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ अहिंसा - विश्वकोश] [09/ 卐

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