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! करने की बुद्धि 'करुणा - भावना' कहलाती है ।
दीनेष्वार्त्तेषु भीतेषु याचमानेषु जीवितम् । प्रतीकारपरा बुद्धिः कारुण्यमभिधीयते ॥
(मुदिता-भावना)
दीन, पीड़ित, भयभीत और जीवन की याचना करने वाले प्राणियों के दुःख को
(1163)
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ज्ञानचक्षुषाम् ।
तपः- श्रुत-यमोद्युक्तचेतसां विजिताक्षकषायाणां स्वतत्त्वाभ्यासशालिनाम् ॥
जगत्त्रयचमत्कारि-चरणाधिष्ठितात्मनाम्
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तद्गुणेषु प्रमोदो यः सद्भिः सा मुदिता मता ॥
भावना' है।
(है. योग. 4/120)
(ज्ञा. 25/11-12/1277-78)
मुदिता (प्रमोद) भावना - जिनका चित्त तप, शास्त्रपरिशीलन और व्रत में उद्यत हैं; जो ज्ञानरूप नेत्र से संयुक्त हैं, जिन्होंने इन्द्रियों व कषायों को वश में कर लिया है, जो आत्मतत्त्व के अभ्यास से शोभायमान हैं, तथा जिनकी आत्मा तीनों लोकों को आश्चर्यान्वित करने वाले चारित्र से अधिष्ठित है; उन महापुरुषों के गुणों को देखकर जो हर्ष होता है, वह सत्पुरुषों के द्वारा 'मुदिता भावना' मानी गयी है ।
(1164)
अपास्ताशेषदोषाणां वस्तुतत्त्वावलोकिनाम् । गुणेषु पक्षपातो यः स प्रमोदः प्रकीर्तितः ॥
(है. योग. 4 / 119 )
जिन्होंने सभी दोषों का त्याग किया है, और जो वस्तु के यथार्थस्वरूप को देखते
हैं, उन साधु पुरुषों के गुणों के प्रति आदरभाव होना, उनकी प्रशंसा करना, 'प्रमोद
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अहिंसा - विश्वकोश | 469 ]
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