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________________ 编 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 (1162) $$$$$$$$$$$$$$$$$$$第 ! करने की बुद्धि 'करुणा - भावना' कहलाती है । दीनेष्वार्त्तेषु भीतेषु याचमानेषु जीवितम् । प्रतीकारपरा बुद्धिः कारुण्यमभिधीयते ॥ (मुदिता-भावना) दीन, पीड़ित, भयभीत और जीवन की याचना करने वाले प्राणियों के दुःख को (1163) 編編 ज्ञानचक्षुषाम् । तपः- श्रुत-यमोद्युक्तचेतसां विजिताक्षकषायाणां स्वतत्त्वाभ्यासशालिनाम् ॥ जगत्त्रयचमत्कारि-चरणाधिष्ठितात्मनाम् 1 तद्गुणेषु प्रमोदो यः सद्भिः सा मुदिता मता ॥ भावना' है। (है. योग. 4/120) (ज्ञा. 25/11-12/1277-78) मुदिता (प्रमोद) भावना - जिनका चित्त तप, शास्त्रपरिशीलन और व्रत में उद्यत हैं; जो ज्ञानरूप नेत्र से संयुक्त हैं, जिन्होंने इन्द्रियों व कषायों को वश में कर लिया है, जो आत्मतत्त्व के अभ्यास से शोभायमान हैं, तथा जिनकी आत्मा तीनों लोकों को आश्चर्यान्वित करने वाले चारित्र से अधिष्ठित है; उन महापुरुषों के गुणों को देखकर जो हर्ष होता है, वह सत्पुरुषों के द्वारा 'मुदिता भावना' मानी गयी है । (1164) अपास्ताशेषदोषाणां वस्तुतत्त्वावलोकिनाम् । गुणेषु पक्षपातो यः स प्रमोदः प्रकीर्तितः ॥ (है. योग. 4 / 119 ) जिन्होंने सभी दोषों का त्याग किया है, और जो वस्तु के यथार्थस्वरूप को देखते हैं, उन साधु पुरुषों के गुणों के प्रति आदरभाव होना, उनकी प्रशंसा करना, 'प्रमोद 编卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 अहिंसा - विश्वकोश | 469 ] $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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