SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 496
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [1159) SHEEYEYENEYELFAYEHEYENEFIYEYELEHEYEYENEFYFHEHEYEHENFLYEHEYEHEEP जेण रागा विरजेज, जेण सेएसु रजदि। जेण मित्तीं पभावेज तं णाणं जिणसासणे॥ (मूला. 4/268) जिस से जीव राग से विरक्त (रहित) होता है, जिससे जीव मोक्ष के प्रति राग/रुचि ॥ भी करता है, और जिससे मैत्री भावित/वर्द्धित होती है, वही जिन-शासन में 'ज्ञान' है। {1160) मा कार्षीत् कोऽपि पापानि, मा च भूत् कोऽपि दुःखितः। मुच्यतां जगदप्येषामतिमैत्री निगद्यते ॥ (है. योग. 4/118) जगत् का कोई भी जीव पाप न करे, तथा कोई भी जीव दुःखी न हो, समस्त जीव दुःख से मुक्त हो कर सुखी हों, इस प्रकार का चिन्तन करना 'मैत्रीभावना' है। 2弱弱弱弱品5%%%%$%$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ (करुणा-भावना) {1161) दैन्यशोकसमुत्त्रासरोगपीडार्दितात्मसु । वधबन्धनरुद्धेषु याचमानेषु जीवितम् ॥ क्षुत्तृट् श्रंमाभिभूतेषु शीताद्यैर्व्यथितेषु च। अवरुद्धेषु निस्त्रिशैर्घात्यमानेषु निर्दयैः॥ मरणार्तेषु भूतेषु यत्प्रतीकारवाञ्छया। अनुग्रहमतिः सेयं करुणेति प्रकीर्तिता॥ (ज्ञा. 25/8-10/1274-76) करुणाभावना-दीनता, शोक, त्रास व रोग की वेदना से पीड़ित; वध व बन्धन से ॐ रोके गये; जीवित की याचना करने वाले; भूख, प्यास व परिश्रम से पराजित; शीत आदि की 卐 बाधा से संयुक्त, दुष्ट जीवों के द्वारा रोक कर निर्दयता से पीड़ित किये जाने वाले; तथा मरण 卐 卐 की वेदना से व्यथित प्राणियों के विषय में उनकी पीड़ा के प्रतीकार की इच्छा से जो अनुग्रहरूप बुद्धि हुआ करती है वह 'करुणा' कही जाती है। FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET [जैन संस्कृति खण्ड/468
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy