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EFFESTHESEEEEEEEEEEEEEEEEEng तस्थावेवं प्रयात्यस्य काले पर्वतनारदौ। समित्पुष्पार्थमभ्येत्य.वनं नद्याः प्रवाहजम्॥ (282) जलं पीत्वा मयूराणां गतानां मार्गदर्शनात् । बभाषे नारदस्तत्र हे पर्वत शिखावलः। (283) तेष्वेकोऽस्ति स्त्रियः सप्पैवेति तच्छुवणादसौ। मृषेत्यसोडा चित्ते स व्यधान पगितबंधनम्॥ (284)
इस प्रकार, इधर राजा वसु का समय बीत रहा था, उधर एक दिन पर्वत और नारद, समिधा तथा पुष्प लाने के लिए वन में गए थे। वहां वे क्या देखते हैं कि कुछ मयूर नदी के प्रवाह का पानी पी कर गए हुए हैं। उनका मार्ग देख कर नारद ने पर्वत से कहा कि हे पर्वत! ये जो मयूर गए हुए हैं, उनमें एक तो पुरुष है और बाकी सात स्त्रिय हैं। नारद की बात सुन कर पर्वत ने कहा कि तुम्हारा कहना झूठ है। उसे मन में यह बात सह्य नहीं हुई, अत: उसने कोई शर्त बांध ली।
गत्वा ततोऽन्तरं किंचित् सदभुतं नारदोदितम्। विदित्वा विस्मयं सोऽयान्मनागस्मात्पुरोगतः॥ (285) करेणुमार्गमालोक्य सस्मितं नारदोऽवदत् । अन्धवामेक्षणा हस्तिवशैकाऽत्राधुना गता॥ (286)
तदनन्तर कुछ आगे जाकर जब उसे इस बात का पता चला कि नारद का कहा सच है तो वह आश्चर्य को卐 卐 प्राप्त हुआ। वे दोनों वहां से कुछ और आगे बढे तो नारद हाथियों का मार्ग देख कर मुसकराता हुआ बोला कि यहां से 卐जो अभी हस्तिनी गई है उसका बायां नेत्र अंधा है।
अन्धसर्पविलायानमिव ते पूर्वभाषितम्। आसीद्यादृच्छिकं सत्यमिदं तु परिहास्यताम्॥ (287) प्रयाति तव विज्ञानं मया विदितमस्ति किम्। इति स्मितं स सासूर्य चित्ते विस्मयमाप्तवान् ॥ (288) तमसत्यं पुनः कर्तुं करिणीगमनानुगः। पुराउन्तारदोद्दिष्ट मुपलभ्य तथैव तत् ॥ (289)
पर्वत ने कहा कि तुम्हारा पहला कहना अंधे सांप के बिल में पहुंच जाने के समान यों ही सच निकल आया। यह ठीक है, परंतु तुम्हारा यह विज्ञान हास्यापद है। मैं क्या समझू? इस तरह हंसते हुए ईर्ष्या के साथ उसने कहा और चित्त में आश्चर्य प्राप्त किया। तदनन्तर नारद को झुठा सिद्ध करने के लिए वह हस्तिनी के मार्ग का अनुसरण करता हुआ आगे बढ़ा और नगर तक पहुंचने के पहले ही उसे इस बात का पता चल गया कि नारद ने जो कहा था, वह सच है।
अहिंसा-विश्वकोश।4951