________________
FEEEEEEEEEEEEEEEEEEE: 卐 कहना मिथ्या है। समस्त शास्त्रों में पूर्वापर- सन्दर्भ के ज्ञान से जिनकी बुद्धि अत्यन्त निर्मल थी, ऐसे तेरे पिता ने जो ॥ ॐ कहा था, हे पुत्र! वही नारद कह रहा है। इस प्रकार पर्वत से कह कर वह प्रात:काल होते ही राजा वसु के घर गयी।
ना वसु ने उसे बड़े आदर से देखा और उससे आने का कारण पूछा। स्वस्तिमती ने वसु के लिए सब वृत्तान्त सुना कर पहले पढ़ते समय गुरुगृह में उसके हाथ में घरोहर रूपी रखी हुई गुरुदक्षिणा का स्मरण दिलाते हुए याचना की कि हे पुत्र! यद्यपि तू सब तत्त्व और अतत्त्व को जानता है तथापि तुझे पर्वत के ही वचन का समर्थन करना चाहिए और नारद के वचन को दूषित ठहराना चाहिए। स्वस्तिमती ने चूंकि वसु को गुरुदक्षिणाविषयक सत्य का स्मरण कराया था, इसलिए उसने उसके वचन स्वीकृत कर लिये और वह भी कृतकृत्य के समान निश्चिन्त हो घर वापस गयी।
आस्थानीसमये तस्थौ दिनादौ वसुरासने। तमिन्द्रमिव देवौघाः क्षत्रियौघाः सिषेविरे । प्रविष्टौ च नृपास्थानी विप्रौ पर्वतनारदौ। सर्वशास्त्रविशेषज्ञैः प्राश्रिकैः परिवारितौ ॥
(ह. पु. 17/82-83
सिंहासनस्थमाशीभिर्दष्वोपरिचरं वसुम्। पीठ मर्दै: सहासीनी विप्रो नारदपर्वतो।
(ह. पु. 17/89
弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱~~~弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱
पण्डितेषु यथास्थानं निविष्टे षु यथासनम् । भूपं ज्ञानवयोवृद्धाः केचिदेवं व्यजिज्ञपन् । राजन् वस्तुविसंवादादिमौ नारदपर्वतौ । विद्वांसावागतौ पार्श्व न्यायमार्गविदस्तव ॥ वैदिकार्थविचारोऽयं त्वदन्येषामगोचरः। विच्छिन्नसंप्रदायानामिदानीमिह भूतले।
(ह. पु. 17/93-95)
तदनन्तर जब प्रात:काल के समय सभा का अवसर आया तब राजा वसु सिंहासन पर आरूढ हुआ और जिस प्रकार देवों के समूह इन्द्र की सेवा करते हैं उसी प्रकार क्षत्रियों के समूह उसकी सेवा में बैठे थे। उसी समय सर्व शास्त्रों के विशेषज्ञ प्रश्नकर्ताओं से घिरे हुए पर्वत और नारद ने राजसभा में प्रवेश किया। अन्तरिक्ष सिंहासन पर स्थित राजा वस को आशीर्वाद देकर नारद और पर्वत अपने-अपने सहायकों के साथ यथायोग्य स्थानों पर बैठ गये। जब सब विद्वान यथास्थान यथायोग्य आसनों पर बैठ गये, तब जो ज्ञान और अवस्था में वृद्ध थे, ऐसे कितने ही लोगों ने राजा वसु से इस प्रकार निवेदन किया:- हे राजन्! ये नारद और पर्वत विद्वान् किसी एक वस्तु में विसंवाद (सन्देह) होने से आपके पास आये हैं क्योंकि आप न्यायमार्ग के वेत्ता हैं। इस वैदिक अर्थ का विचार इस समय पृथिवी-तल पर आपके सिवाय अन्य लोगों का विषय नहीं है क्योंकि उन सब का सम्प्रदाय छिन्न-भिन्न हो चुका है।
FREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE E ELY
अहिंसा-विश्वकोश।4731