Book Title: Ahimsa Vishvakosh Part 02
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 520
________________ 蛋蛋蛋節! $$$$$$$$$$$$$$$$ 编卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 नृपान् भद्रासनारूढान् स स्वयंवरमण्डपे । यथाक्रमं विनिर्दिश्य कुलनात्यादिभिः पृथक् ॥ (241) व्यरमत् सा समासक्ता साकेतपुरनायकम् । अकरोत् कण्ठदेशे तं मालालंकृतविग्रहम् ॥ (242) अनयोरनुरूपोऽयं संगमो वेधसा कृतः । इत्युक्त्वा मत्सरापेतमतुष्यद् भूपमंडलम् ॥ (243) कल्याणविधिपर्याप्तौ स्थित्वा तत्रैव कानिचित् । दिनानि सगरः श्रीमान् सुखेन सुलसान्वितः ॥ (244) वहां अनेक राजा उत्तम उत्तम आसनों पर समारूढ़ थे। पुरोहित उनके कुल, जाति आदि का पृथक्-पृथक् क्रमपूर्वक निर्देश करने लगा, परंतु सुलसा अयोध्या के राजा सगर में आसक्त थी, अतः उन सब राजाओं को छोड़ती हुई आगे बढ़ती गई और सगर के गले में ही माला डाल कर उसका शरीर माला से अलंकृत किया। 'इन दोनों का समागम विधाता ने ठीक ही किया है' यह कह कर वहां जो राजा ईर्ष्यारहित थे, वे बहुत ही संतुष्ट हुए। विवाह की विधि समाप्त होने पर लक्ष्मीसम्पत्र राजा सगर सुलसा के साथ वहीं पर कुछ दिन तक सुख से रहा। ! साकेतनगरं गत्वा भोगाननुभवन् स्थितः । मधुपिङ्गलसाधोश्च वर्तमानस्य संयमे ॥ (245) पुरमेकं तनुस्थित्यै विशतो वीक्ष्य लक्षणम् । कश्चिन्नैमित्तको यूनः पृथ्वीराज्यार्हदेहजैः ॥ ( 246 ) लक्षणैरेष भिक्षाशी किल किं लक्षणागमैः । इत्यनिन्दत्तदाकर्ण्य परोऽप्येवमभाषत ॥ (247) एष राज्यश्रियं भुञ्जन् मृषा सगरमंत्रिणा । कृत्रिमागममादर्श्य दूषितः सन् हिया तपः ॥ (248) प्रपन्नवान् गते चास्मिन् सुलसां सगरोऽग्रहीत् । इति तद्वचनं श्रुत्वा मुनिः क्रोधाग्निदीपितः ॥ (249) तदनन्तर अयोध्या नगरी में जाकर भोगों का अनुभव करता हुआ राजा सगर सुख से रहने लगा। इधर मधुपिंगल साधु संयम धारण कर रहे थे। एक दिन वे आहार के लिए किसी नगर में गए थे। वहां कोई निमित्तज्ञानी उनके लक्षण देख कर कहने लगा कि 'इस युवा के चिह्न तो पृथिवी का राज्य करने के योग्य हैं, परंतु यह भिक्षा - भोजन करने वाला है, इससे जान पड़ता है कि इन सामुद्रिक शास्त्रों से क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है? ये सब व्यर्थ हैं।' इस प्रकार उस निमित्तज्ञानी ने लक्षण शास्त्र - सामुद्रिक शास्त्र की निंदा की। उसके साथ ही दूसरा निमित्तज्ञानी था। वह कहने लगा कि 'यह तो राज्यलक्ष्मी का ही उपभोग करता था, परंतु सगर राजा के मंत्री ने झूठ झूट ही कृत्रिमशास्त्र दिखला कर इसे दूषित ठहरा दिया और इसीलिए इसने लज्जावश तप धारण कर लिया। इसके चले जाने पर सगर ने सुलसा न स्वीकृत कर लिया।' उस निमित्तज्ञानी के वचन सुनकर मधुपिंगल मुनि क्रोधाग्नि से प्रज्ज्वलित हो गए। $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐卐卐卐卐卐卐 编 [ जैन संस्कृति खण्ड /490 רכרכרכר को 卐 筆 筑 卐

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