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出行
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दिनेषु
केषुचिद्यातेषूद्यानावनिशोधने । हलाग्रेणोद्धृतं मंत्री मया दृष्टं यदृच्छया ॥ (232) पुरातनमिदं शास्त्रमित्यजानत्रिव स्वयम् । विस्मितो राजपुत्राणां समाजे तदवाचयत् ॥ (233) संभावयतु पिङ्गाक्षं कन्यां वरकदम्बके । न मालया मृतिस्तस्याः सा तं चेत्समबीभवत् ॥ (234) तेनापि न प्रवेष्टव्या सभां ही भीत्रपावता । प्रविष्टोऽप्यत्र यः पापी ततो निर्घात्यतामिति ॥ (235)
कितने ही दिन बीत जाने पर वन की पृथिवी खोदते समय उसने हल के अग्रभाग से वह पुस्तक निकाली
और कहा कि इच्छानुसार खोदते हुए मुझे यह संदूकची मिली है। यह कोई प्राचीन शास्त्र है। इस प्रकार कहता हुआ
वह आश्चर्य प्रकट करने लगा, मानो कुछ जानता ही नहीं हो। उसने वह पुस्तक राजकुमारों के समूह में बचवायी । 卐
उसमें लिखा था कि कन्या और वर समुदाय में जिसकी आंख सफेद और पीली हो, माला के द्वारा उसका सत्कार नहीं
करना चाहिए। अन्यथा कन्या की मृत्यु हो जाती है या वर मर जाता है। इसलिए डर और लज्जा वाले पुरुष को सभा
में प्रवेश नहीं करना चाहिए। यदि कोई पापी प्रविष्ट भी हो जाए तो उसे निकाल देना चाहिए ।
तदाऽसौ सर्वमाकर्ण्य लज्जया मधुपिङ्गलः । तद्गुणत्वात्ततो गत्वा हरिषेणगुरोस्तपः ॥ (236) प्रपन्नस्तद्विदित्वाऽगुर्मुदं सगर भूपतिः । विश्वभूश्चेष्ट संसिद्धावन्ये च कुटिलाशयाः ॥ (237) सन्तस्तद्बान्धवाश्चान्ये विषादमगमंस्तदा ।
न पश्यन्त्यर्थिनः पापं वञ्चनासंचितं महत् ॥ (238)
पिंगल में यह सब गुण विद्यमान थे, अतः वह यह सब सुन लज्जावश वहां से बाहर चला गया और गुरु के पास जाकर उसने तप धारण कर लिया। यह जान कर अपनी इष्टसिद्धि होने से राजा सगर, विश्वभू मंत्री
हरिषेण
| तथा कुटिल अभिप्राय वाले अन्य मनुष्य हर्ष को प्राप्त हुए। मधुपिंगल के भाई-बंधुओं को तथा अन्य सज्जन मनुष्यों
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| को उस समय दुःख हुआ। देखो
स्वार्थी मनुष्य दूसरों को ठगने से उत्पन्न हुए बड़े भारी पाप को नहीं देखते हैं।
अथ कृत्वा महापूजां दिनान्यष्टौ जिनेशिनाम् ।
तदन्तेऽभिषवं चैनां सुलसां कन्यकोत्तमाम् ॥ (239) स्नातामलंकृतां शुद्धतिथिवारादिसंनिधौ । पुरोधा रथमारोप्य नीत्वा चारुभटावृताम् ॥ (240)
इधर राजा सुयोधन ने आठ दिन तक जिनेन्द्र भगवान् की महा पूजा की, और उसके अंत में अभिषेक
किया । तदनन्तर उत्तम कन्या सुलसा को स्नान कराया, आभूषण पहनाए और शुद्ध तिथि, वार आदि के दिन अनेक
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उत्तम योद्धाओं से घिरी हुई उस कन्या को पुरोहित रथ में बैठा कर स्वयंवर मंडप ले गया। 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐事事事事事事事卐卐卐
अहिंसा - विश्वकोश | 489]
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