Book Title: Ahimsa Vishvakosh Part 02
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 510
________________ LELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELE . परिशिष्ट (2) FO राजा वसु की कथा (उत्तर पुराण के आधार पर) [आचार्य गुणभद्र-कृत 'उत्तरपुराण' में (पर्व 67 के 157 से 473 श्लोकों में) विस्तृत कथा वर्णित है जिससे यह ज्ञात होता है कि महाकाल असुर ने छल-कपट-पूर्वक हिंसक यज्ञ की परम्परा का प्रवर्तन कराया था। धर्मसम्मत वैदिक व्याख्यान अहिंसक यज्ञ का ही समर्थन करता है। पाठकों की सुविधा के लिए पूरी कथा यहां प्रस्तुत की जा रही है:-)] 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明媚 काले गतवति प्राभूत सगराख्यो महीपतिः॥ (157) नि:खण्डमण्डलचण्डः सुलसायाः स्वयंवरे । मधुपिङ्गलनामानं कुमारवरमागतम्॥ (158) दूष्यलक्ष्माऽयमित्युक्त्वा निरास्थन्नृपमध्यगम्। सागरे बद्धवैरः सन् निष्क्रम्य मधपिङ्गलः॥ (159) सलज्जः संयमी भूत्वा महाकालासुरोऽभवत्। सोऽसुर: सगराधीशवंशनिर्मूलनोद्यतः॥ (160) (उ. पु. 67/157-160) बहुत समय व्यतीत हुआ, सगर नाम का एक राजा हुआ था। वह अखंड राष्ट्र का स्वामी था तथा बड़ा " ही क्रोधी था। एक बार उसने सुलसा के स्वयंवर में आए हुए एवं राजाओं के बीच में बैठे हुए मधुपिंगल नाम के 卐 ॐ श्रेष्ठ राजकुमार को 'यह दुष्ट लक्षणों से युक्त है' ऐसा कह कर सभा-भूमि से निकाल दिया। राजा मधुपिंगल सगर 卐 राजा के साथ वैर बांध कर लजाता हुआ स्वयंवर-मण्डप से बाहर निकल पड़ा। अंत में संयम धारण कर वह ॐ महाकाल नाम का असुर हुआ। वह असुर राजा सगर के वंश को निर्मूल करने के लिए तत्पर था। 出羽弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱虫弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱 द्विजवेषं समादाय संप्राप्य सगराइयम्। अथर्ववेदविहितं प्राणिहिंसापरायणम्॥ (161) कुरु यागं श्रियो वृश्य शत्रुविच्छेदनेच्छया। इति तं दुर्मतिं भूपं पापाभीरुळमोहयत्॥ (162) वह ब्राह्मण का वेष रख कर राजा सगर के पास पहुंचा और कहने लगा कि तू लक्ष्मी की वृद्धि के लिए, शत्रुओं का उच्छेद करने के लिए अथर्ववेद में कहा हुआ प्राणियों की हिंसा करने वाला यज्ञ कर। इस प्रकार पाप से ॐ नहीं डरने वाले उस महाकाल नामक असुर ने उस दुर्बुद्धि राजा को मोहित कर दिया। REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/480

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