________________
FREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEP O हिंसादि-निवर्तिकाः मन-वचन-काय गुप्तियाँ
{1002} हिंसादिनिवृत्तिर्वा शरीरगुप्तिरिति दृष्टा जिनागमे, प्राणिप्राणवियोजनं, अदत्तादानं, मिथुनकर्म शरीरेण, परिग्रहादानमित्यादिका या विशिष्टा क्रिया सेह कायशब्देनोच्यते। म कायिकोपकृतेर्गुप्तिावृत्तिः काय-गुप्तिरिति व्याख्यातं सूरिणा।
(भग. आ. विजयो. 1182) हिंसा आदि से निवृत्ति को 'कायगुप्ति' कहा है। यहां 'काय' शब्द से प्राणियों के प्राणों का घात, बिना दी हुई वस्तु का ग्रहण, शरीर से मैथुन कर्म और परिग्रह का ग्रहण इत्यादि विशिष्ट क्रिया कही गई है। कायिक क्रियाओं से गुप्ति अर्थात् व्यावृत्ति ही काय-गुप्ति है- ऐसा आचार्य ने व्याख्यान किया है।
(1003) शयनासन-निक्षेपादान-चंक्रमणेषु यः।। स्थानेषु चेष्टानियमः कायगुप्तिस्तु साऽपरा॥
(है. योग. 1/44) (जिनसे किसी जीव की हिंसा सम्भव हो, ऐसी) सोने, बैठने, रखने, लेने और चलने आदि की क्रियाओं या चेष्टाओं पर नियंत्रण (नियमन) रखना व स्वच्छंद प्रवृत्ति का त्याग करना, दूसरे प्रकार की 'कायगुप्ति' है।
和听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明小
{1004)
___विपरीतार्थप्रतिपत्तिहेतुत्वात्परदुःखोत्पत्तिनिमित्तत्वाच्चाधर्माद्या व्यावृत्तिः सा वाग्गुप्तिः।
(भग. आ. विजयो. 1181) विपरीत अर्थ की प्रतिपत्ति में कारण होने से दूसरों को दुःख की उत्पत्ति में निमित्त होने से जो वचन अधर्ममय है, उससे निवृत्ति ही 'वचन गुप्ति' है।
.ויפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפהפתבכתבתכתנתפתלהבתפהכתבהנהלהלהלהלמ
卐EL
अहिंसा-विश्वकोश/4031