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E TERESERVEYRETREEEEEEEEEEEEEEEEEE । स्तेयानुबन्धी (चौर्यानुबन्धी)- तीव्र लोभ एवं तीव्र काम व क्रोध से व्याप्त चित्त वाले पुरुष की चित्तवृत्तिक 卐 का प्राणियों के उपघातक, परनारीहरण तथा परद्रव्यहरण आदि कुकृत्यों में निरन्तर होना, स्तेयानुबन्धी रौद्रध्यान है। 卐 संरक्षणानुबन्धी- शब्दादि पांच विषयों के साधनभूत धन की रक्षा करने की चिन्ता करना और न 卐 मालूम दूसरा क्या करेगा?' इस आशंका से दूसरे का उपघात करने की कषाययुक्त चित्त-वृत्ति रखना संरक्षणानुबन्धी ॥ 卐रौद्रध्यान है।]
{1102) प्राणिनां रोदनाद् रुद्रः क्रूरः सत्त्वेषु निघृणः। पुमांस्तत्र भवं रौद्रं विद्धि ध्यानं चतुर्विधम्॥ हिंसानन्दमृषानन्दस्तेयसंरक्षणात्मकम् ।
(आ. पु. 21/42-43) जो पुरुष प्राणियों को रुलाता है, वह रुद्र, क्रूर अथवा सब जीवों में निर्दय कहलाता - है, ऐसे पुरुष का जो ध्यान होता है उसे रौद्रध्यान कहते हैं। यह रौद्रध्यान भी चार प्रकार का होता है। हिंसानन्द अर्थात् हिंसा में आनन्द मानना, मृषानन्द अर्थात् झूठ बोलने में आनन्द
मानना, स्तेयानन्द अर्थात् चोरी करने में आनन्द मानना और संरक्षणानन्द अर्थात् परिग्रह की 卐 रक्षा में ही रात-दिन लगा रह कर आनन्द मानना- ये रौद्रध्यान के चार भेद हैं।
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{1103} प्रकष्टतरदुर्लेश्यात्रयोपोद्वलहितम् । अन्तर्मुहूर्तकालोत्थं पूर्ववद्भाव. इष्यते ॥ वधबन्धाभिसंधानमङ्गच्छेदोपतापने दण्डपारुष्यमित्यादि हिंसानन्दः स्मृतो बुधैः॥
(आ. पु. 21/44-45) ___ यह रौद्रध्यान अत्यन्त अशुभ, कृष्ण आदि तीन खोटी लेश्याओं के बल से उत्पन्न होता है, अन्तर्मुहूर्त काल तक रहता है और पहले आर्तध्यान के समान इसका
क्षायोपशमिक भाव होता है। किसी मारने और बांधने आदि की इच्छा रखना, अंग卐 उपांगों को छेदना, सन्ताप देना तथा कठोर दण्ड देना आदि को विद्वान् लोग हिंसानन्द 卐
नाम का आर्तध्यान कहते हैं।
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अहिंसा-विश्वकोश/447)