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{1139) जरज्जम्बूकमाघ्राय मस्तके व्याघ्रधेनुका। स्वशावनिर्विशेषं तमपीप्यत् स्तन्यमात्मनः॥ करिणो हरिणारातीनन्वीयुः सह यूथपैः। स्तनपानोत्सुका भेजुः करिणीः सिंहपोतकाः॥ कलभान् कलभाङ्कारमुखरान् नखरैः खरैः। कण्ठीरवः स्पृशन् कण्ठे नाभ्यनन्दि न यूथपैः॥ करिण्यो विसिनीपत्रपुटैः पानीयमानयत् । तद्योगपीठपर्यन्तभुवः सम्मार्जनेच्छया॥
.. (आ. पु. 36/166-169) हाल की ब्यायी हुई सिंही भैंसे के बच्चे का मस्तक सूंघ कर उसे अपने बच्चे के समान अपना दूध पिला रही थी। हाथी अपने झुण्ड के मुखियों के साथ-साथ सिंहों के 卐 पीछे-पीछे जा रहे थे और स्तन के पीने में उत्सुक हुए सिंह के बच्चे हथिनियों के समीप है ॐ पहुंच रहे थे। बालकपन के कारण मधुर शब्द करते हुए हाथियों के बच्चों को सिंह अपने पैने हैं। नाखूनों से उनकी गरदन पर स्पर्श कर रहा था और ऐसा करते हुए उस सिंह को हाथियों के
सरदार बहुत ही अच्छा समझ रहे थे- उनका अभिनन्दन कर रहे थे। उन मुनिराज के ध्यान म करने के आसन के समीप की भूमि को साफ करने की इच्छा से हथिनियां कमलिनी के पत्तों 卐 * का दोना बनाकर उसमें भर-भरकर पानी ला रही थीं।
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पुष्करैः पुष्करोदस्तैयस्तैरधिपदद्वयम्। स्तम्बरमा मुनिं भेजुरहो शमकरं तपः॥ उपाधि भोगिनां भोगैर्विनीलैर्व्यरुचन्मुनिः। विन्यस्तैरर्चनायेव नीलैरुत्पलदामकैः॥
___ (आ. पु. 36/170-171) ___ हाथी अपने सूंड के अग्रभाग से उठा कर लाये हुए कमल उनके दोनों चरणों पर 卐 रख देते थे और इस तरह वे उनकी उपासना करते थे। अहा! तपश्चरण कैसी शांति उत्पन्न की
करने वाला है! वे मुनिराज चरणों के समीप आये हुए सौ के काले फणाओं से ऐसे सुशोभित हो रहे थे, मानो पूजा के लिए नीलकमलों की मालाएं ही बना कर रखी हों।
[जैन संस्कृति खण्ड/460