________________
FFFFFFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEM
(1093) अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खमाणे णो अत्ताणं आसादेज्जा णो परं आसादेजा है 卐 णो अण्णाइं पाणाइं जीवाइं सत्ताई आसादेजा।
से अणासादए अणासादमाणे वज्झमाणाणं पाणाणं भूताणं जीवाणं सत्ताणं जहा से दीवे असंदीणे एवं से भवति सरणं महामुणी।
(आचा. 1/6/5 सू. 197) भिक्षु विवेकपूर्वक धर्म का व्याख्यान करता हुआ अपने आपको बाधा (आशातना) न पहुंचाए, न दूसरे को बाधा पहुंचाए और न ही अन्य प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को 卐 बाधा पहुंचाए।
किसी भी प्राणी को बाधा न पहुंचाने वाला, तथा जिससे प्राण, भूत, जीव और सत्त्व का वध हो, (ऐसा धर्म व्याख्यान न देने वाला) तथा आहारादि की प्राप्ति के निमित्त भी म (धर्मोपदेश न करने वाला) वह महामुनि संसार-प्रवाह में डूबते हुए प्राणों, भूतों, जीवों और ' सत्वों के लिए असंदीन द्वीप की तरह शरण होता है।
$$$$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听%
(1094) जावंति लोए पाणा, तसा अदुव थावरा। तं जाणमजाणं वा, न हणे, न हणावए ॥ (9)
(दशवै. 6/272) लोक में जितने भी त्रस अथवा स्थावर प्राणी हैं, साधु या साध्वी, जानते या अजानते, उनका (स्वयं) हनन न करे और न ही (दूसरों से) हनन कराए, (तथा हनन करने के वालों की अनुमोदना भी न करें। (9)
如明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明
[1095)
तसे पाणे न हिंसेज्जा वाया अदुव कम्मुणा। उवरओ सव्वभूएसु पासेज्ज विविहं जगं॥ (12)
(दशवै. 8/400) (मुनि) वचन अथवा कर्म (कार्य) से त्रस प्राणियों की हिंसा न करे। समस्त जीवों 卐 की हिंसा से उपरत (साधु या साध्वी) विविध स्वरूप वाले जगत् (प्राणिजगत्) को 卐
(विवेक पूर्वक) देखे । (12)
R
ELELELEUCLEUEUEUELCLCLCLCLELELELELELELELELELELELELELELELELELE UniHIMIRRIOSITIOप्रमा
क प
: - PHOTON अहिंसा-विश्वकोश।443]