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(999) उच्चारं पासवणं खेलं सिंघाण-जल्लियं । आहारं उवहिं देहं. अन्नं वावि तहाविहं ॥ अणावायमसंलोए अणावाए चेव होइ संलोए। आवायमसंलोए आवाए चेय संलोए।
(उत्त. 24/15-16) उच्चार-मल, प्रस्रवण- मूत्र, श्लेष्म- कफ, सिंघानक-नाक का मैल, जल्लशरीर का मैल, आहार, उपधि-उपकरण, शरीर तथा अन्य कोई विसर्जन-योग्य वस्तु का विवेक-पूर्वक स्थण्डिल भूमि में उत्सर्ग करना चाहिए। (1) अनापात असंलोक -जहां लोगों का आवागमन न हो, और वे दूर से भी दीखते हों। (2)अनापात संलोक- लोगों का आवागमन न हो, किन्तु लोग दूर से दीखते हों। (3)आपात असंलोक- लोगों का आवागमन हो, किन्तु वे दीखते न हों। (4) आपात संलोक- लोगों का आवागमन हो और वे दिखाई म भी देते हों। इस प्रकार स्थण्डिल भूमि चार प्रकार की होती है।
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[1000) निक्षेपणं यदादानमीक्षित्वा योग्यवस्तुनः। समितिः सा तु विज्ञेया निक्षेपादाननामिका ॥
(ह. पु. 2/125) देखकर योग्य वस्तु का रखना और उठाना- 'आदाननिक्षेपण समिति' है।
{1001 शरीरान्तर्मलत्यागः प्रगतासु सुभूमिषु। यत्तत्समितिरेषा तु प्रतिष्ठापनिका मता ॥
(ह. पु. 2/126) प्रासुक भूमि पर शरीर का मल छोड़ना- 'प्रतिष्ठापन समिति' है।
FFFFFFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/402