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एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति। एत्थ सत्थं है असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाता भवंति।
तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं पुढविसत्थं समारंभेज्जा, णेवऽण्णेहिं पुढविसत्थं । समारंभावेजा, णेवऽण्णे-पुढविसत्थं समारंभंते समणुजाणेजा।
जस्सेते पुढविकम्मसमारंभा परिण्णाता भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे त्ति 卐 बेमि।
(आचा. 1/1/2/सू. 16-18) जो यहां (लोक में) पृथ्वीकायिक जीवों पर शस्त्र का समारंभ-प्रयोग करता है, वह ॐ वास्तव में इन आरंभों (हिंसा सम्बन्धी प्रवृत्तियों के कटु परिणामों व जीवों की वेदना) से ॐ अनजान है।
जो पृथ्वीकायिक जीवों पर शस्त्र का समारंभ/ प्रयोग नहीं करता, वह वास्तव में इन आरभों/हिंसा-सम्बन्धी प्रवृत्तियों का ज्ञाता है,(वही इनसे मुक्त होता है)# इस (पृथ्वीकायिक जीवों की अव्यक्त वेदना) को जानकर बुद्धिमान् मनुष्य न स्वयं 卐 पृथ्वीकाय का समारंभ करे, न दूसरों से पृथ्वीकाय का समारंभ करवाए और न उसका समारंभ करने वाले का अनुमोदन करे।
जिसने पृथ्वीकाय-सम्बन्धी समारंभ को जान लिया अर्थात् हिंसा के कटु परिणाम को जान लिया, वही परिज्ञातकर्मा (हिंसा का त्यागी) मुनि होता है। ऐसा मैं कहता हूं।
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{1051) कप्पइ णे, कप्पइ णे पातुं, अदुवा विभूसाए। पुढो सत्थेहिं विउटुंति । एत्थ विभ ' तेसिं णो णिकरणाए। एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। * एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्छेते आरंभा परिण्णाया भवंति। तं परिण्णाय मेहावी :
णेव सयं उदयसत्थं समारभेजा, णेवण्णेहिं उदयसत्थं समारभावेजा, उदयसत्थं " समारभंते वि अण्णे ण समणुजाणेजा। जस्सेते उदयसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुणी परिण्णातकम्मे त्ति बेमि।
(आचा. 1/1/3/सू. 27-31) "हमें कल्पता है। अपने सिद्धान्त के अनुसार हम पीने के लिए जल ले सकते है हैं।''(यह आजीवकों एवं शैवों का कथन है)। # "हम पीने तथा नहाने (विभूषा) के लिए भी जल का प्रयोग कर सकते हैं" (यह 卐 बौद्ध श्रमणों का मत है)।
FREEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/426
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