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इस तरह अपने शास्त्र का प्रमाण देकर या नाना प्रकार के शस्त्रों द्वारा जलकाय के है जीवों की हिंसा करते हैं। अपने शास्त्र का प्रमाण देकर जलकाय की हिंसा करने वाले साधु, हिंसा के पाप से विरत नहीं हो सकते। अर्थात् उनका हिंसा न करने का संकल्प परिपूर्ण नहीं हो सकता।
जो यहां, शस्त्र-प्रयोग कर जलकाय जीवों का समारम्भ करता है, वह इन आरंभों 卐 卐 (जीवों की वेदना व हिंसा के कुपरिणाम) से अनभिज्ञ है। अर्थात् हिंसा करने वाला कितने ही शास्त्रों का प्रमाण दे, वास्तव में वह अज्ञानी ही है।
जो जलकायिक जीवों पर शस्त्र-प्रयोग नहीं करता, वह आरंभों का ज्ञाता है, वह हिंसा-दोष से मुक्त होता है। अर्थात् वह ज्ञ-परिज्ञा से हिंसा को जानकर प्रत्याख्यान-परिज्ञा है 卐से उसे त्याग देता है। ज बुद्धिमान मनुष्य यह (उक्त कथन) जान कर स्वयं जलकाय का समारंभ न करे, दूसरों से न करवाए, और उसका समारंभ करने वालों का अनुमोदन न करे।
____ जिसको जल-सम्बन्धी समारंभ का ज्ञान होता है, वही परिज्ञातकर्मा (मुनि) होता है 卐 है। ऐसा मैं कहता हूं।
{10523 से बेमि- इमं पि जातिधम्मयं, एयं पिजातिधम्मयं; इमं पि बुड्ढिधम्मयं, एयं ॥ पि बुड्ढिधम्मयं; इमं पि चित्तमंतयं, एयं पि चित्तमंतयं; इमं पि छिण्णं मिलाति, एयं
पि छिण्णं मिलाति; इमं पि आहारगं, एयं पि आहारगं; इमं पि अणितियं, एयं पि *अणितियं; इमं पि असासयं, एयं पि असासयं; इमं पिचयोवचइयं, एयं पिचयोवचइयं, म इमं पि विप्परिणामधम्मयं, एयं पि विप्परिणामधम्मयं।
(आचा. 1/1/5/सू. 45) ___मैं कहता हूं- यह मनुष्य भी जन्म लेता है, यह वनस्पति भी जन्म लेती है। यह मनुष्य भी बढ़ता है, यह वनस्पति भी बढ़ती है। यह मनुष्य भी चेतना-युक्त है, यह वनस्पति
भी चेतना-युक्त है। यह मनुष्य-शरीर छिन्न होने पर म्लान हो जाता है, यह वनस्पति भी छिन्न म होने पर म्लान होती है। यह मनुष्य भी आहार करता है, यह वनस्पति भी आहार करती है। 卐 यह मनुष्य-शरीर भी अनित्य है, यह वनस्पति का शरीर भी अनित्य है। यह मनुष्य-शरीर की
भी अशाश्वत है, यह वनस्पति-शरीर भी अशाश्वत है। यह मनुष्य-शरीर भी आहार से उपचित होता है, आहार के अभाव में अपचित/क्षीण/दुर्बल होता है। यह वनस्पति का शरीर
भी इसी प्रकार उपचित-अपचित होता है। यह मनुष्य-शरीर भी अनेक प्रकार की अवस्थाओं ॥ 卐 को प्राप्त होता है। यह वनस्पति-शरीर भी अनेक प्रकार की अवस्थाओं को प्राप्त होता है। REFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE
N अहिंसा-विश्वकोश।427]
甲出出出出山