________________
FFFFFFF FFEEEEEEEEEEEEEE FO अहिंसा-प्रधान गहाव्रतों का अनुष्ठाताः साधु-वर्ग
%%%
%
%%%
%%%%%%%%
{866) तमेव धम्मं दुविहं आइक्खइ, तं जहा-अगार-धम्मं अणगार-धम्मंच।अणगारधम्मो ताव इह खलु सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयइ, 卐 सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसा-वायाओ वेरमणं, सव्वाओ卐 9 अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं,
सव्वओ राइ-भोयणाओ वेरमणं । अयमाउसो! अणगार-सामइए धम्मे पण्णत्ते, एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए निग्गंथे वा निग्गंथी वा विहरमाणे आणाए आराहए भवइ।
(उवा. 1/11) 卐 धर्म दो प्रकार का है- अगार-धर्म और अनगार-धर्म। अनगार-धर्म में साधक सर्वतः सर्वात्मना-संपूर्ण रूप में, सर्वात्मभाव से सावध कार्यों का परित्याग करता हुआ * मुंडित होकर, गृहवास से अनगार दशा-मुनि-अवस्था में प्रव्रजित होता है। वह संपूर्णत:
प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह तथा रात्रि-भोजन से विरत होता है। । भगवान् ने कहा- आयुष्मान्! यह अनगारों के लिए समाचरणीय धर्म कहा गया है। इस धर्म की शिक्षा-अभ्यास या आचरण में उपस्थित-प्रयत्नशील रहते हुए निर्ग्रन्थ-साधु या निर्ग्रन्थी-साध्वी आज्ञा (अर्हत्-देशना) के आराधक होते हैं।
%%
明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听
%%%%%%%%%
{867} अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यं विमुक्तताम्। रात्र्यभोजनषष्ठानि व्रतान्येतान्यभावयन्॥
(आ.पु. 34/169) अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, परिग्रहत्याग और रात्रिभोजनत्याग- इन छह महाव्रतों का मुनि निरन्तर पालन करते थे।
当 当当%
(868} सागारश्चानगारश्च द्वाविह व्रतिनौ मतौ। सागारोऽणुव्रतोऽत्र स्यादनगारो महाव्रतः॥
__ (ह. पु. 58/136) सागार और अनगार के भेद से व्रती दो प्रकार के माने गये हैं। इनमें अणुव्रतों के धारी सागार कहलाते हैं और महाव्रतों के धारक महाव्रती कहे जाते हैं। FEEEEEEEEEEEEEEEEEN
अहिंसा-विश्वकोश।353]
当当