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(अहिंसा व्रत की पूरक और पोषका समिति व गुप्ति)
["प्रश्न व्याकरण' सूत्र (2/1 सू. 107) में समिति व गुप्ति को 'अहिंसा' की पर्याय बताया गया है। अतः 卐 मुनि-चर्या में 'अहिंसा' को प्रतिष्ठापित करने की दृष्टि से 'समिति' व 'गुप्ति'-इन दोनों का विशेष महत्त्व है। इसी ॐ दृष्टि से कुछ शास्त्रीय वचन यहां संकलित किए गए हैं-]
O हिंसादि दोषों से सुरक्षा समिति व गुप्ति द्वारा
{894) प्राणिपीड़ापरिहारार्थं सम्यगयनं समितिः।
(सर्वा. 9/2/789) ___प्राणिपीड़ा का परिहार करने के उद्देश्य से भली प्रकार से आना-जाना, उठाना卐धरना, ग्रहण करना व मोचन करना 'समिति' है।
{895)
जन्तुकृपादितमनसः समितिषु साधोः प्रवर्तमानस्य। प्राणेन्द्रियपरिहारं संयममाहुर्महामुनयः॥
(पद्म. पं. 1/96) ___प्राणियों के प्रति कृपा-भाव से आर्द्र मन वाला 'मुनि' 'समिति' में प्रवृत्त होता है। प्राणियों की रक्षा हेतु उसके इन्द्रिय-निग्रह को ही महामुनियों ने 'संयम' बताया है।
{896) वदसमिदिपालणाए दंडच्चाएण इंदियजएण। परिणममाणस्स पुणो संजमधम्मो हवे णियमा॥
(बा. अणु. 76) 卐 ___मन, वचन, काय की प्रवृत्तिरूप दण्ड (हिंसा) को त्याग कर तथा इन्द्रियों को जीत कर जो व्रत व समितियों के पालनरूप प्रवृत्ति करता है, उसके नियम से 'संयम 卐 धर्म' होता है।
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E अहिंसा-विश्वकोश/361)