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RADABALEKANELELELELELEVELELLEGENTLEME-EFFm. भगनानाननानानानानाननननननननामinian
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卐 से भिक्खु वा जाव समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा- असणं वा अच्चुसिणं ) ॐ अस्संजए भिक्खु पडियाएं सूवेण वा विहुवणेण वा तालियंटेण वा पत्तेण वा साहाए
वा साहाभंगेण वा पेहुणेण वा पेहुणहत्थेण वा चेलेण वा चेलकण्णेण वा हत्थेण वा के मुहेण वा फुमेज्ज वा वीएज्जा वा। से पुव्वामेव आलोएज्जा-आउसोत्ति वा भगिणि 卐त्ति वा मा एतं तुमं असणं वा अच्चुसिणं सूवेण वा जाव फुमाहि वा वीयाहि वा,
अभिकंखसि मे दाउं एमेव दलयाहि । से सेवं वदंतस्स परो सूवेण वा जाव वीइत्ता आहट्ट दलएज्जा, तहप्पगारं असणं वा अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा।
से भिक्खु वा जाव समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा' वणस्सतिकायपतिट्ठितं। तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वणस्सतिकायपतिट्ठितं अफासुयं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। एवं तसकाए वि।।
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(आचा. 2/1/7/सू. 368) 卐 गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी को यह ज्ञात हो जाए कि ॥ साधु को देने के लिए यह अत्यन्त उष्ण आहार असंयत गृहस्थ सूप-(छाजने) से, पंखे से है ॐ ताड़ पत्र, खजूर आदि के पत्ते, शाखा या शाखा-खंड से, मोर के पंख से अथवा उससे बने ।
हुए पंख से, वस्त्र से, या वस्त्र के पल्ले से, हाथ से या मुंह से, फूंक मार कर पंखे आदि से - हवा करके ठंडा करके देने वाला है। वह पहले (देखते ही) विचार करे और उक्त गृहस्थ
से कहे-आयुष्मन् गृहस्थ! या आयुष्मती भगिनी! तुम इस अत्यंत गर्म आहार को सूप, 卐 卐 पंखे....हाथ-मुंह आदि से फूंक मत मारो और न ही हवा करके ठंडा करो। अगर तुम्हारी
इच्छा इस आहार को देने की हो तो, ऐसे ही दे दो। इस पर भी वह गृहस्थ न माने और उस
अत्युष्ण आहार को सूप, पंखे आदि से हवा दे कर ठंडा करके देने लगे तो उस आहार को 卐 अप्रासुक और अनेषणीय समझ कर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे।
गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यह जाने कि यह अशनादि चतुर्विध आहार वनस्पतिकाय (हरि सब्जी, पत्ते आदि) पर रखा हुआ है तो उस प्रकार के वनस्पतिकाय-प्रतिष्ठित आहार (चतुर्विध) को अप्रासुक और अनेषणीय जान कर प्राप्त म होने पर भी न ले। इसी प्रकार त्रसकाय से प्रतिष्ठित आहार हो तो..... उसे भी अप्रासुक एवं 卐 卐 अनेषणीय मान कर ग्रहण न करे।
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अहिंसा-विश्वकोश।393)