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अजयं चरमाणो ठ, पाण-भूयाइं हिंसई ।
बंधई पावयं कम्मं तं से होई कडुयं फलं ॥ (24) अजयं चिट्ठमाणो उ, पाण- भूयाई हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होई कहुयं फलं ॥ (25)
अजयं आसमाणो उ, पाण- भूयाई हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होई कडुयं फलं ॥ (26) अजयं सयमाणो उ, पाण- ग- भूयाई हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ (27) अजयं भुंजमाणो उ, पाण- भूयाइं हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ (28) अजयं भासमाणो उ, पाण-भूयाइं हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ (29)
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अयतनापूर्वक गमन करने वाला साधु (या साध्वी) प्राणों (त्रस) और भूतों
(स्थावर जीवों) की हिंसा करता है, ( उससे) वह (ज्ञानावरणीय आदि) पापकर्म का बन्ध करता है। वह उसके लिए कटु फल वाला होता है। (24)
अयतनापूर्वक खड़ा होने वाला साधु (या साध्वी) प्राणों और भूतों की हिंसा करता
है, (उससे) पापकर्म का बन्ध होता है, जो उसके लिए कटु फल वाला होता है। (25)
• अयतापूर्वक बैठने वाला साधक (द्वीन्द्रियादि) त्रस और स्थावर जीवों की
(दशवै. 4/ 55-60)
हिंसा करता है, (उससे उसके ) पापकर्म का बन्ध होता है, जो उसके लिए कटु फल
वाला होता है । (26)
अयतना से सोने वाला त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है, ( उससे) वह
पापकर्म का बन्ध करता है, जो उसके लिए कटु फल
प्रदायक होता है। (27)
馬 अयतना से भोजन करने वाला व्यक्ति त्रस एवं स्थावर जीवों की हिंसा करता
卐 है, (जिससे) वह पापकर्म का बन्ध करता है, जो उसके लिए कटु फल देने वाला
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होता है। (28)
यतनारहित बोलने वाला त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है। (उससे
उसके) पापकर्म का बन्ध होता है, जो उसके लिए कटु फल वाला होता है। (29)
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अहिंसा - विश्वकोश | 373 ]
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